कौन कहता है महिलाएं रिक्शा नहीं चला सकती… रिक्शा नहीं जिंदगी की गाड़ी चला रही है उज्जैन में महिलाएं
महाकाल लोक बनने के बाद मिला रोजगार, शहर की आधा दर्जन से ज्यादा महिलाओं ने थामा रिक्शा का स्टेरिंग..
उज्जैन। भारत के दूसरे शहरों की तरह उज्जैन में भी अब महिलाएं ई रिक्शा की ड्राइविंग सीट पर बैठकर पूरे आत्मविश्वास से ई-रिक्शा, ऑटो चलाती दिखाई देती हैं। अब उज्जैन में करीब आधा दर्जन से अधिक महिलाएं यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही है। और यह सब महाकाल लोक बनने के बाद हो पाया है। महाकाल लोक बनने के बाद बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इस वजह से शहर के हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। महाकाल लोक बनने के बाद करीब आधा दर्जन महिलाएं ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार को पाल रही है ऐसे ही उज्जैन आगर रोड स्थित कालोनी में रहने वाली एक महिला जो की छुटपुट मजदूरी करती थी कोरोना के बाद वह बेरोजगार हो गई थी।जब कहीं काम नहीं मिला तो महिला ने ई-रिक्शा खरीदा और खुद चला कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रही है। महिला अपने छोटे बच्चों को अपने साथ ले ई-रिक्शा लेकर निकल पड़ती है।
बेटे को कुछ बनाने की है ललक
बचपन से कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, कोई खिलाड़ी, कोई टीचर तो कोई नेता बनने के सपने देखता है। प्रत्येक बच्चे के दिमाग में बचपन से ही कुछ बनने की ललक लग जाती है। हालांकि ज्यादातर मामलों में हालात के चलते व समय बीतने के साथ-साथ व्यक्ति के सपने भी बदलने लगते हैं। इसके बावजूद कई बार जिंदगी में ऐसी स्थिति आ जाती है जब व्यक्ति को अपने सपनों को खत्म करके परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने पड़ते हैं। समाज में कई ऐसे पुरुष या महिलाएं हैं जिन्हें परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने पड़े, वह बनना तो क्या चाहते थे लेकिन हालातों ने उन्हें कहा लाकर खड़ा कर दिया। इस तरह की कहानी ई रिक्शा चलाने वाले महिला की है उसका कहना था कि मैं पढ़ाई करती थी लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से मेरी पढ़ाई छूट गई और मां-बाप ने मेरी शादी कर दी अब मेरी कमाई से बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाऊंगी ताकि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बन सके।