नीमच : भाषा केवल संवाद का माध्यम नही होती वह अभिव्यक्ति का माध्यम भी है-रश्मि रमानीकृति का हिंदी दिवस कार्यक्रम सम्पन्न
नीमच । भाषा केवल संवाद का माध्यम नही होती वह अभिव्यक्ति का माध्यम भी यह बात ख्यात साहित्यकार श्रीमती रश्मि रमानी ने कृति के हिंदी दिवस कार्यक्रम में मातृभाषा से आत्मनिर्वासन घातक है विषय पर चर्चा मे मंच से कहीं । आपका विचार था कि मातृभाषा से बच्चे की दूरी तभी शुरू हो जाती है ,जब वह बोलना सीखता है । हम उसे कहते हैं बेटा बनाना खाले , एपल खाले ,ये शब्द अपनी भाषा हिंदी में बोलने के स्थान पर अंग्रेजी में बोलकर हम बच्चों को अपनी भाषा से दूर कर रहे है । जबकि हम जीते भी हैं, साँस भी लेते हैं तो अपनी मातृभाषा में 7 भाषा में भ्रष्टाचार घर से शुरू हो जाता है। रही सही कसर विद्यालय में पूरी हो जाती है जहाँ वह अंग्रेजी माध्यम से पढता है। मातृभाषा से दूरी का सबसे घातक परिणाम यह होता है कि जो बात या पाठ बच्चा अपनी मातृभाषा में एक घंटे में सीख लेता है या याद कर लेता है उसे वही बात सीखने व समझने के लिए तीन से चार घंटे लगते हैं अंग्रेजी में ,वह रट्टू तोता बनकर रह जाता है ।
श्रीमती रश्मि रमानी ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम सब प्रेम, झगड़ा , आदि अपनी मातृभाषा में ही सहज रूप से कर पाते हैं तो फिर हम शिक्षा के लिए बच्चों पर अंग्रेजी क्यों थोप रहे हैं। यह कार्य हमारी संस्कृति पर अत्याचार है। उन्होंने दिनकर के शब्द दोहराते हुए कहा कि यदि किसी समाज को नष्ट करना हो तो उसकी भाषा को नष्ट कर दो और मेकाले की शिक्षा पद्धति यही कर रही है। हमे स्वतन्त्रता तो मिल गई पर भाषा और शिक्षा की गुलामी हम आज भी ढो रहे हैं। आपने सिन्धी भाषा का उदाहरण देते हुए कहा कि सिंधियों ने विस्थापन का दर्द झेला और सिन्धी भाषा को विस्मृत करने का दंश भी झेल रहे हैं। मातृभाषा में चिन्तन अच्छी तरह होता है तो हम सबकी यह जिम्मेदारी है कि भारतीय संस्कृति की इस विशिष्ट पहचान को बचाए रखें। अपने वक्तव्य के अंत में श्रीमती रश्मी रमानी ने श्रोताओं से प्रश्न किया कि आप और हम अगली पीढ़ी को घर ,धन-दौलत बहुत कुछ देकर जायेंगे तो हमें अपनी भाषा को भी विरासत में देकर जाना है। क्या हम ऐसा कर पायेंगे
आपने कहा की जब हम कोई भी मिलावटी वास्तु घर में लाना पसंद नही करते तो भाषा में मिलावट क्यों कर रहे हैं ? यदि आप सोचतें हैं कि अपनी मातृभाषा की रक्षा सरकार या उसकी अकादमियां ही करेंगी तो आप गलत हैं। यह हम सबकी जिम्मेदारी है की हम अपनी विरासत की रक्षा करें और इसे अगली पीढ़ी को सुरक्षित सौंप कर जाएँ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ बीना चौधरी ने कहा जब चारों तरफ अंग्रेजी का शोर है तो इस सबके बीच हमारी मातृभाषा कैसे सुरक्षित रहेगी । आप सोचते हैं कि फिल्मो. और टीवी चेनल के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा मिल रहा है तो आप उनकी भाषा को देखिये। उनकी भाषा में अंग्रेजी शब्दों की भरमार है।
ये भाषा को बढ़ावा देने के बजाय उसे भ्रष्ट कर रहे हैं उन्होंने कहा कि हिंदी के रूप में हमारी मातृभाषा वह कुंजी है जिसे हमें विरासत के रूप में अपने बच्चों को देना है। हिंदी हमारी अस्मिता से जुडी है। उन्होंने जापान का का किस्सा सुनाया कि जापानियों के अनुसार जबसे प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं में हिंदी में भाषण देते हैं तो जापानियों का भारत और हिंदी दोनों के प्रति सम्मान बढ़ा है। श्रीमती बीना चौधरी ने कहा कि जापान और यूरोप के देश हमसे इसलिए आगे हैं क्योंकि वे अपना सारा काम अपनी मातृभाषा में करते हैं जबकि हमारे मन में अंग्रेजी के लिए अतिशय अनुराग है। जब हम अपनी भाषा से दूर होते हैं तो हम अपनी संस्कृति और विरासत से दूर होते जाते है। इसी स्थिति को बदलने की जरूरत है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्था के अध्यक्ष बाबूलाल गौड़ ,.सचिव डॉ. विनोद शर्मा, ,कार्यक्रम संयोजक सत्येन्द्र सक्सेना , महिला प्रकोष्ठ प्रभारी पुष्पलता सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत किया , मुख्य अतिथि श्रीमती रश्मि रमानी का शाल भेंट कर संस्था अध्यक्ष बाबूलाल गौड़ और कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ बीना चौधरी ने सम्मान किया।
डॉ श्रीमती माधुरी चौरसिया ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किये। इस अवसर नीमच सिन्धी पंचायत के सदस्यों ने श्रीमती रश्मि रमानी का सम्मान किया , और उनके नीमच आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त की। कार्यक्रम में अतिथि परिचय ओमप्रकाश चौधरी ने दिया, कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पुष्पलता सक्सेना ने किया। आभार कार्यक्रम संयोजक संत्येंद्र सक्सेना ने माना। कार्यक्रम में किशोर जेवरिया ,दर्शनसिंह गाँधी, शरद पाटीदार , अक्षय पुरोहित, डी मित्तल, रघुनंदन पाराशर , मुकेश कासलीवाल , जगदीश लोगड, शैलेन्द्र पोरवाल सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।