देवास : बैर से बैर शांत नहीं होता जबकि प्रेम से प्रेम बढ़ जाता है, क्षमा कायरो का नहीं शूरवीरो का आभूषण है
देवास । पर्युषण के अंतर्गत ग्यारह वार्षिक कर्तव्यो का भी उल्लेख आता है । वर्षभर में इन्हे भी हमें पूर्ण करना चाहिए। ये कर्तव्य है- संघ पूजन, साधर्मिक भक्ति, तीर्थ यात्रा, स्नात्र महोत्सव, देवद्रव्य वृद्धि, महापूजा, रात्रि जागरण, श्रुत पूजा, उद्यापन, तीर्थ प्रभावना, आलोचना प्रायश्चित। पर्वाधिराज पर्युषण हमारे जीवन का प्राण है, शुद्धि का सुत्र है, हृदय का हार है। पर्युषण का दूसरा नाम क्षमापना पर्व भी है। क्षमापना है तो ही पर्युषण की सार्थकता है। मिच्छामि-दुक्कड़म कहकर हम क्षमापना करते है। मिच्छा का अर्थ है मिथ्या, दुक्कड़म का अर्थ नष्ट होना है। मेरे जीवन की सभी मिथ्या भाव समाप्त हो जाए यहीं क्षमापना की शुद्ध भावना है। शास्त्रो ने भी कहा है बैर थी बैर शमें नही जगमॉ, प्रेम थी प्रेम बधे आलम मां। बैर से बैर को शांत नहीं कर सकते, लेकिन प्रेम को प्रेम से बहु गुणित कर सकते है। जलन, क्षमा के जल से ही शांत हो सकती है।
शंखेश्वर पार्शवनाथ मंदिर में पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन धर्मसभा में नियुष भाई मेहता व कैवन भाई सलोत ने यह बात कही। आपने कहा कि प्रभु का दास कभी उदास नहीं होता है। क्षमा मांगना सरल है लेकिन क्षमा करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसीलिए तो क्षमा को वीरो का आभुषण माना गया है, कायरो का नहीं। जिसके मन में उदारता, विशालता, गंभीरता होती है वहीं क्षमा कर सकता है। आप जीवन में किसी से भी लड़ झगड़ लो लेकिन शत्रुता की गांठ कभी मत बांधना। क्योंकि उसके बाद सुलह सारे रास्ते भी बंद हो जाते है और यह गांठ जन्म-जन्मांतर तक शत्रुता के रूप में बनी रहेगी। क्षमा पांच प्रकार की होती है- उपकार क्षमा याने अपने उपकारी की गलतियो को क्षमा करना। अपकार क्षमा याने जिसने हमें सदैव तकलीफ दी हो उसे भी क्षमा करना। विपाक क्षमा याने क्रोध के दुष्परिणाम को जानकर क्षमा करना। वचन क्षमा याने परमात्मा के वचन को याद करके क्षमा करना। धर्मक्षमा याने जिस व्यक्ति का स्वभाव ही क्षमापूर्ण रहता है। वह सदैव क्षमा को धर्म के रूप में ही धारण कर लेता है। आग को खत्म करने के लिये पेट्रोल का नहीं ठंडे जल का उपयोग करने में ही बुद्धिमानी है। क्रोध की कालिमा को हटाकर क्षमा की सहजता-सरलता तथा सरसता को ही दिल दिमाग में उतारकर शांति का शंखनाद करना चाहिये।
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि आज पर्युषण के तृतीय दिवस पर नवपद जी पूजन का लाभ किशोरीलाल शाह की स्मृति में महेन्द्र, निर्मल, मनीष शाह परिवार ने प्राप्त किया। सुबह प्रतिक्रमण एवं सामूहिक स्नात्र पूजन का दिव्य अनुष्ठान हुआ। कल्पसूत्रजी की भक्ति भावना का लाभ कैलाश कुमार इंदरमल केशरीमल जैन भोमियाजी परिवार ने प्राप्त किया। महाआरती पश्चात देर रात तक कल्पसूत्र की संगीतमय भक्ति भावना का कार्यक्रम चलता रहा। जिसमें श्रद्धालु भक्त झूमते नाचते रहे। इस अवसर पर मुकेश चौधरी ,अनूप शेखावत, अरविंद जैन मामा, कालू संघवी, संजय कटारिया, विलास तरवेचा, मनीष जैन, संजय तरवेचा, जयमित जैन, विनय जैन आदि उपस्थित थे। आज 15 सितंबर को सुबह 8.30 बजे कल्पसूत्र वांचन प्रारंभ एवं दोपहर में नवपदजी पूजन मांगीलाल छगनीराम जैन परिवार द्वारा होगा। रात्रि महाआरती पश्चात शत्रुंजय महातीर्थ की ऐतिहासिक एवं अद्भुत भावयात्रा की जावेगी। संगीतमय इस भावयात्रा में शत्रुंजय महातीर्थ की स्पर्शना की जावेगी।