रतलाम : आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में लगी तपस्याओं की झडी
रतलाम । श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शांत-क्रांति जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में दूसरे पर्यूषण पर्व के दौरान तपस्याओं की झडी लगी हुई है। सोमवार को परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर १००८ श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में मासक्षमण का एक और कठोर तप पूर्ण हुआ। कई तपस्वियों ने अठठाई और अन्य तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए। श्री संघ ने तपस्वियों का बहुमान कर कठिन तप की अनुमोदना की।
सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में आचार्यश्री से संजय मेहता ने ३१ उपवास के प्रत्याख्यान लिए। श्री जयमंगल मुनिजी मसा एवं महासती श्री ख्यातिश्री जी मसा ने ७-७ उपवास के प्रत्याख्यान लिए। रायपुरिया निवासी अनिता रांका ने सिद्धी तप की लडी में ५ उपवास के प्रत्याख्यान लिए। किरण बेन पिरोदिया ने ८ उपवास, युवा संघ के महामंत्री हर्ष पटवा ने ७ उपवास एवं प्रांजल पटवा ने ५ उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। मासक्षमण तपस्वी श्री मेहता का श्री संघ की और से अध्यक्ष मोहनलाल पिरोदिया, मंत्री दिलीप मूणत एवं तपस्वी हर्ष पटवा ने बहुमान किया। सिद्धी तप कर रही श्रीमती रांका का तपस्वी किरण बेन ने बहुमान किया।
आचार्यश्री इस मौके पर तप अनुमोदना में अधिक से अधिक तप आराधना करने का आव्हान किया। इससे पूर्व उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने प्रवचन में इच्छाओं को खत्म करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, लेकिन इच्छा संत के जीवन का अंत करने की क्षमता रखती है। इच्छा भिक्षुक को भिखारी और श्रेष्ठ को निकृष्ठ बना देती है। आज हर व्यक्ति शांति को प्राप्त करना चाहता है, लेकिन इच्छाएं शांति प्राप्त नहीं करने देगी। शांति के लिए इच्छा निरोधकता का जीवन अपनाना ही श्रेष्ठ उपाय है।
उपाध्याय श्री ने कहा कि संतोष आत्मा के लिए तारक है और इच्छा मारक है। रावण के पास सोने की लंका थी और मंदोदरी जैसी नारी थी, लेकिन सीता को प्राप्त करने की इच्छा मे आसक्त होकर उसने सबकुछ तबाह कर लिया। चातुर्मास इच्छाओं पर विजय का अवसर देता है। इसमें अधिक से अधिक तप आराधना कर अपने जीवन को सफल बनाए। आरंभ में श्री विशाल प्रिय मुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया।