इंदौर नगर निगम की आर्थिक मदद से मिली संजीवनी, मिलों में झांकियों का निर्माण शुरू
इंदौर । शहर की बंद पड़ी कपड़ा मिलों में इन दिनों हलचल है। वर्षभर से जिन परिसरों में सन्नाटा पसरा हुआ था वहां इन दिनों मजदूरों की आवाजाही नजर आ रही है। सुनसान टिन शेड से मशीनों की खटपट एक बार फिर सुनाई देने लगी है। दरअसल, मिल परिसरों में इन दिनों झांकियों का निर्माण चल रहा है। कहीं भगवान कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जा रहा है तो कहीं चंद्रयान की सफलता का उल्लेख।
इंदौर की एक सदी पुरानी परंपरा को सहेजने में मिल के मजदूर जुटे हुए हैं। इन मजदूरों की जेब में पैसा नहीं है, लेकिन यह इनका जज्बा ही है जो हर वर्ष गणेशोत्सव की परंपरा को निभा रहा है। नगर निगम ने हाल ही में मिलों को झांकियों के लिए दो-दो लाख रुपये की मदद की है। हालांकि दरकार इससे कहीं ज्यादा की है। अब मजदूर शासन की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। अनंत चतुर्दशी की रात झांकियों का यह झिलमिलाता कारवां शहर की सड़कों पर उतर जाएगा। इंदौर शहर की लाखों आंखें इन झांकियों को निहारने के लिए रातभर जागेंगी।
मजदूरों की मांग
ल्लएक सदी पुरानी परंपरा को सहेजने के लिए शासन मदद करे। आर्थिक मदद उपलब्ध कराएं।
ल्लप्राधिकरण ने पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष अब तक कोई मदद नहीं की है। प्राधिकरण मदद करे।
ल्लझांकी निर्माण के लिए शेड, बिजली नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाए। नगर निगम परिसर में विशेष सफाई अभियान चलाए।वर्ष 1924 में पहली बार हुकमचंद मिल की झांकी सड़क पर उतरी थी। उस वक्त लालटेन और मशाल की रोशनी में झांकियां निकाली जाती थी। मजदूर और मिल प्रबंधन दोनों झांकियों के लिए आर्थिक सहयोग करते थे। मिल वर्ष 1991 में बंद हो चुकी है, लेकिन झांकी की परंपरा अनवरत जारी है। मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि इस वर्ष तीन झांकियां निकाली जा रही हैं। एक झांकी चंद्रयान की सफलता पर रहेगी, जबकि दो धार्मिक रहेंगी। कोलकाता के 20 कलाकार रात-दिन झांकियों के निर्माण में लगे हैं। श्रीवंश ने बताया कि झांकियों के निर्माण के लिए निगम से मिले दो लाख रुपये के आर्थिक अनुदान के बाद निर्माण की गति बढ़ी है। झांकियों में 10 अखाड़े भी शामिल रहेंगे।