रतलाम । परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में बुधवार को दूसरे पर्यूषण महापर्व की आराधना पूर्ण हो गई। अंतिम दिन समाजजनों ने क्षमापना पर्व मनाया। इस मौके पर तपस्वियों के पारणा कार्यक्रम भी हुए। आचार्यश्री की निश्रा में दोनो पर्यूषण मनाए गए। पहला पर्यूषण गणना अनुसार तो दूसरा महापर्व समाज के साथ मनाकर उन्होंने सरलता का परिचय दिया।सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में पर्व के अंतिम दिन भी आचार्यश्री की निश्रा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। श्री जयमंगल मुनिजी मसा एवं महासती श्री ख्यातिश्री जी मसा ने अठठाई, संजय मेहता ने 32 उपवास पूर्ण कर मासक्षमण, युवा संघ के महामंत्री हर्ष पटवा ने अठठाई तप पूर्ण किया। जबकि प्रांजल पटवा और अनिता रांका ने सिद्धी तप की लडी में 7-7 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। अन्य आराधकों ने उपवास, बेले और तेले के प्रत्याख्यान लिए। आचार्यश्री ने क्षमापना पर्व का महत्व बताते हुए वर्ष के कर्मों का क्षय करने का आव्हान किया।उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने प्रवचन में स्वछंदता पर अंकुश लगाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मन और इन्द्रियों की चंचलता के कारण व्यक्ति स्वछंदता में प्रवृत्त होता है। स्वछंद व्यक्ति मोहान्ध और कामान्ध बन जाता है और उसमें ऐसे राग पैदा होते है, जो सदगुणों का नाश कर देते है।