पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म
उज्जैन । श्रावक संस्कार शिविर श्री महावीर तपोभूमि में अपने प्रवचन में ब्रह्मचारिणी बहन डॉ. प्रभा दीदी ने आज पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन आर्जव धर्म पर कहा कि जो कुटिल भाव को छोड़कर निर्मल ह्रदय से आचरण करता है उसी के अंदर ही आजर्व भाव प्रकट होता है सरलता का स्वरूप सरलता को देने वाला अंतर की कुटिलता को समाप्त करने वाला ही है आर्जव धर्म है
समाज सचिव सचिन कासलीवाल ने बताया कि श्री महावीर तपोभूमि पर आचार्य गुरुदेव श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज के आशीर्वाद से जबलपुर से पधारी ब्रह्मचारिणी बहन डॉक्टर प्रभा दीदी के नेतृत्व में शावक संस्कार शिविर का आयोजन आयोजित किया जा रहा है जिसमें सुबह 4.30 बजे से ही धार्मिक कार्यक्रम एवं अनुष्ठान प्रारंभ हो जाते हैं जो दोपहर तक चलते हैं दोपहर के सत्र में एवं शाम के सत्र में भी धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते हैं देव शाम को सांस्कृतिक अनुष्ठान के अंतर्गत अनेक धर्म पर आधारित कार्यक्रम किए जाते हैं डॉ प्रभा दीदी प्रवचन में समाज जनों को जीने की कला उठने बैठने सोनी सोनी जैन खाने पीने घूमने आदि अनेक प्रकार के विधाओं का ज्ञान सीखते हैं सुभानित नियम की पूजा के साथ शिविर में श्री जी का अभिषेक एवं शांति धारा आयोजित होती है प्रथम अभिषेक का लाभ इंद्रमल जैन एवं शांति धारा का लाभ शैलेंद्र शाह को प्राप्त हुआ आज के भजन के लाभार्थी सुनील जैन ट्रांसपोर्ट वाले थे। दीदी ने अपने प्रवचन में कहा कि आचार्य भगवंत कहते हैं कि मन की वचन की काया की कुटिलता को छोड़ना ही आर्जव धर्म है माया चारी छोड़े बिना आर्जव धर्म प्रगट होता नहीं मायाचारी करने से तिर्यंच गति का आश्रव होता है अगर देवगति की प्राप्ति करनी है।
तो मायाचारी का पूर्णतय: त्याग करना चाहिये यही आज का आर्जव धर्म सिखाता है और कहां की
कपट ना कीजे कोय, चोरन के पुर ना बसैं ।
सरल सुभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा ॥
उत्तम आर्जव रीति बखानी, रन्चक दगा बहुत दुखदानी।
मन में हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सो करिये ॥
करिये सरल तिंहु जोग अपने, देख निरमल आरसी।
मुख करे जैसा लखे तैसा, कपट प्रीति अन्गारसी ॥
नहीं लहे लछमी अधिक छल करि, करम बन्ध विशेषता ।
भय त्यागि दूध बिलाव पीवै, आपदा नहीं देखता ॥
उत्तम आर्जव धर्मं
आर्जव स्वभावी आत्मा के आश्रय से आत्मा में छल-कपट मायाचार के भाव रूप शांति-स्वरुप जो पर्याय प्रकट होती है उसे आर्जव कहतें हैंद्य वैसे तो आत्मा आर्जव स्वभावी है पर अनादी से आत्मा में आर्जव के अभाव रूप माया कषाय रूप पर्याय ही प्रकट रूप से विद्यमान है।
आर्जव धर्म –
जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं . हमारी कमजोरियां जो मजबूरी की तरह हमारे जीवन में शामिल हो गयी हैं , उनको अगर हम रोज -रोज देखते रहे और उन्हें हटाने की भावना भाते रहे तो बहुत आसानी से इन चीजों को अपने जीवन में घटा बढा सकते हैं। हमारे जीवन का प्रभाव आसपास के वातावरण पे भी पड़ता है। जब हमारे अंदर कठोरता आती है तो आसपास का परिवेश भी दूषित होता है . इसीलिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए की हमारे व्यव्हार से किसी को कष्ट न हो।