हे नाथ..! पॉलिटिकल फिक्सिंग की गंध न फैलाओ
भाजपा के साथ कमलनाथ की कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही..! वरना , ऐसे अनुभवी नेता चुनावी दौर में मामूली सी बात पर मीडिया से उग्र पंगा ले लें ..! उन्हें कार्यक्रम स्थल से धक्के मार कर बाहर निकलवाने जैसे कृत्य कर डालें और कैलाश जी पत्रकारों की सहानुभूति तुरंत झपट लें…!
खतरनाक राजनीति के अंदेशे का खुलासा
इंदौर। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ तथा मीडिया के बीच कल हुआ विवाद लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। जो कुछ पर्दे के सामने नजर आ रहा है, वह तो सभी को मालूम है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे एक अलग नजरिए से भी देख रहे हैं। कमलनाथ न सिर्फ वरिष्ठ कांग्रेसी बल्कि सालों साल से राजनीति करते आए हैं। उन्होंने केंद्र की भी राजनीति की लंबी पारी खेली है और पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश की राजनीति भी कर रहे हैं। यानी एक अनुभवी नेता है। ऐसे नेता का मीडिया पर इस तरह भड़क जाना कि उन्हें कार्यक्रम से बाहर निकलवा देना और बाउंसरों द्वारा धक्के तक पड़वा देने जैसी घटना को अंजाम देना अपने आप में आश्चर्य है। एक छोटे से छोटा नेता भी खासकर चुनावी दौर में मीडिया को साध कर चलता है।
कमलनाथ ने तो कल मीडिया से सीधे-सीधे पंगा ले लिया। अंदाज एकदम आक्रामक। कवरेज करने के लिए मीडियाकर्मी कोई पहली बार नहीं गए थे। वह तो रोज ही किसी ने किसी कार्यक्रम का कवरेज करते हैं। सामने भी आते हैं और उनकी कोशिश रहती है कि वह नेता की हर महत्वपूर्ण खबर या हरकत को कैद कर सकें। उसे अपने पाठकों या दर्शकों तक पहुंचा सके। फिर ऐसा भी क्या हो गया था कि कमलनाथ एकदम उग्र हो गए? खुद कमलनाथ का कहना है कि मीडियाकर्मी धमकी दे रहा था। ऐसा नहीं होता है। बताया जा रहा है कि एक मीडियाकर्मी ने सिर्फ यही कहा था कि आप कहें तो हम कार्यक्रम से ही चले जाएं। यह कोई धमकी नहीं है। फिर भी कमलनाथ उस इंदौर जैसे शहर में उग्र हो गए, जिस इंदौर की घटनाओं पर पूरे देश की नजर रहती है।
फिर लोगों के दिमाग में सवालिया निशान यही है कि इतनी छोटी सी बात पर आखिर हंगामा क्यों बरपा? पूर्व मुख्यमंत्री चाहते तो किसी सहयोगी नेता के जरिए मीडिया को प्रेम पूर्वक मंच से दूर कर सकते थे। क्या यह कमलनाथ द्वारा जानबूझकर की गई हरकत थी? इस बात को शायद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी ताड़ लिया और उन्होंने हाथों-हाथ पत्रकार वार्ता लेकर आहत पत्रकारों की सहानुभूति बटोर ली। यह दोनों घटनाक्रम एक अलग ही तरह की चुगली कर रहे हैं। जागरूक जनता अच्छी तरह जानती है कि राजनीति में जो कुछ दिखाई देता है, हकीकत वही नहीं होती। बल्कि कई-कई बार उससे एकदम उलट होती है। इस घटनाक्रम में भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। पहले सत्ता पक्ष की बात कर लें।
केंद्र में मोदी की सरकार है और राज्य में उन्हीं की पार्टी भाजपा की शिवराज सरकार है। जितने ज्यादा राज्य पर भाजपा का कब्जा रहेगा आने वाले लोकसभा चुनाव में केंद्र की राजनीति भाजपा के पक्ष में उतनी ही चमकेगी। इसीलिए मध्य प्रदेश को जीतने के लिए भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने लाडली बहना योजना के जरिए महिलाओं के बड़े वर्ग को प्रभावित किया है और इसके लिए करोड़ों करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। 1000 रुपये से 1250 रुपए और अब लाडली बहनों के खाते में 1500 रुपये अक्टूबर माह से आ सकते हैं। शिवराज ने तो यह राशि 3000 रुपये तक करने की भी घोषणा की है। इस तरह 45 हजार करोड रुपए जैसी बड़ी राशि लाडली बहनों के खाते में डालने की बड़ी योजना है। यानी हर हाल में सत्ता पाने के लिए भाजपा और उनकी सरकार हर महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। मोदी मप्र में एक के बाद एक कई दौरे कर रहे हैं। योजनाओं और विकास कार्यों की झड़ी लग चुकी है। उन्हें हर हाल में मध्य प्रदेश सहित चुनाव होने जा रहे अन्य राज्य जीतना है। मध्य प्रदेश इसलिए भी ,क्योंकि यहां पर पहले से ही भाजपा की सरकार है, और यह अब भाजपा का गढ़ बन गया है। इस बात को कमलनाथ जैसे नेता नहीं समझ रहे हों यह तो हो ही नहीं सकता। चुनावी दौर में सभी मीडिया को साध कर चलते हैं। इसके बावजूद कमलनाथ मामूली बात पर वहां मौजूद समूचे मीडिया को धक्के मार कर बाहर निकलवाने पर तुल गए। ऐसा क्यों..!
कमलनाथ के तरकश के तीर आत्मसमर्पण कर चुके हैं! उन्हें मालूम है कि मध्य प्रदेश में यदि कांग्रेस को सत्ता मिल भी जाए तब भी केंद्र से पंगा लेकर वे सरकार ठीक ढंग से नहीं चला पाएंगे। कांग्रेस के केंद्र में राहुल गांधी के रहते कहीं कमलनाथ हताशा के दौर में तो नहीं हैं! ( ध्यान रहे कि राहुल गांधी जब भारत जोड़ो यात्रा के तहत इंदौर आए थे , तब भी कमलनाथ ने हम मर रहे हैं जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर राहुल की यात्रा और कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था )। नाथ भाजपा के सामने हथियार डालते हुए वह फायदा उठा लेना चाहते हैं जो सत्ता में रहते हुए भी प्राप्त नहीं किया जा सकता! लोगों का सोच है कि राजनीति में सत्ता को लेकर फिक्सिंग हो गई है। भाजपा पर तो सौदेबाजी के आरोप लगते ही रहते हैं। इसलिए जो पॉलिटिकल फिक्सिंग की गंध फैल रही है उसमें असंभव कुछ भी नजर नहीं आता। भाजपा आलाकमान की रणनीति का यह भी एक हिस्सा हो सकता है कि खुलेआम सिंधिया और पर्दे के पीछे से कमलनाथ। कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ते कदम. ..!
कमलनाथ हो या कांग्रेस, या भाजपा जैसी अन्य राजनीतिक पार्टियां उन्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि मीडिया आपके व्यक्तिगत इस्तेमाल की चीज नहीं है। उसका अपना अंदाज है और अपना तौर तरीका।