टीएमयू में दस दिनी उपवास रखने वाले दो दर्जन श्रावक-श्राविकाएं हुए सम्मानित

मुरादाबाद। रिद्धि-सिद्धि भवन में विधि-विधान से हुई समुच्चय पूजा, सोलहकारण पूजन, दशलक्षण पूजा, रत्नत्रय पूजा, श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से श्रेय जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से अनंत चौधरी, तृतीय कलश से कुशाग्र जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से संस्कार जैन को अभिषेक करने का मिला सौभाग्य, आकिंचन का अर्थ- इस संसार मे मेरा किंचित मात्र भी नहीं: प्रतिष्ठाचार्य, डेंटल के स्टुडेंट्स ने नाटक के जरिए बताई णमोकार मंत्र की महिमा,

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद में दशलक्षण महामहोत्सव के दौरान पूरे 10 उपवास रखने वाले दो दर्जन लोगों- डॉ. संजय जैन, सर्वज्ञ, धार्मिक, चेतन, सौम्य, अमन, वैभव पोंडी, वैभव, दर्श, सार्थक, प्रयास, आयुष, अतिशय, आराध्य, वेदिता, कोमल, हितेश, आदित्य, आस्था आदि को कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन और सुश्री नंदिनी जैन ने सम्मानित किया। इस मौके पर ब्रहमचारिणी कल्पना दीदी की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। उत्तम आकिंचन धर्म दिवस पर समुच्चय पूजा, सोलहकारण पूजन, दशलक्षण पूजा, रत्नत्रय पूजा विधि-विधान से की गई। रिद्धि-सिद्धि भवन में श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से श्रेय जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से अनंत चौधरी, तृतीय कलश से कुशाग्र जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से संस्कार जैन को अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। श्रीजी की स्वर्ण कलश से शांतिधारा करने का सौभाग्य सर्वज्ञ, अमन, धार्मिक और संस्कार जबकि रजत कलश से शांति धारा करने का सौभाग्य वैभव, आगम, अर्पित, यश, अंशुल, इति और अभि जैन को मिला। साथ ही अष्ट प्रातिहार्य का सौभाग्य अष्ट कन्याओं- आकांक्षा जैन, स्वस्ति, हर्षिता, कुनिका, नैना, श्रेया, आशी और निशि जैन ने प्राप्त किया। ये सभी धार्मिक अनुष्ठान प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री के सानिध्य में हुए।

दूसरी ओर ऑडी में डेंटल कॉलेज के स्टुडेंट्स की ओर से णमोकार मंत्र…और जैन ब्रेथलेस पर मंगलाचरण से सांस्कृतिक सांझ की शुरूआत की। इसके बाद ओ पालनहारी निर्गुण और न्यारे….,कौन कहता है भगवान आते नहीं…., जिन शासन प्रभु…… जैसे भक्तिमय भजनों की मनमोहनी प्रस्तुति दी। स्टुडेंट्स ने णमोकार मंत्र की महिमा नामक नाटिका की भावपूर्ण प्रस्तुति के जरिए णमोकार मंत्र की महिमा को बताया। दिशा जैन तुलिका ने नरेटर की भूमिका निभाई। भगवान नेमिनाथ और राजुल की नाटिका नृत्य के रूप में प्रस्तुत की गई। डेंटल फाइनल ईयर के छात्रों की ओर से आयो रे शुभ-शुभ दिन आयो रे…, संसार की वृद्धि रथ नू…..आदि पर नृत्य की प्रस्तुति दी। फर्स्ट ईयर के स्टुडेंट्स ने घूमर.., वह गुरुवर है…, उड़ी-उड़ी जाए… पर नृत्य किया। नमो-नमो जैनवीरा…, हम सब जैन… पर भी नवागंतुक छात्रों ने सुदंर नृत्य किया। अंत में डेंटल के अंतिम वर्ष के छात्रों को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व डेंटल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मनीष गोयल, मेडिकल कॉलेज के प्रो. एसके जैन, एचआर निदेशक श्री मनोज जैन, डेंटल कॉलेज की डायरेक्टर गवर्नेंस डॉ. नीलिमा जैन, प्रो. आरके जैन, डायरेक्टर हॉस्पिटल पीएंडडी श्री विपिन जैन, डॉ. अंकिता जैन ने संयुक्त रूप से मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके कल्चरल ईवनिंग का श्रीगणेश किया। संचालन डॉ. अनुष्का जैन और आशी जैन ने किया।

प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री जी ने बताया, उत्तम आकिंचन साधुओं का मुख्य धर्म है। आकिंचन का अर्थ बताते हुए बोले, आ का मतलब है नहीं, किंचन का अर्थ है किंचित मात्र भी। अतः इस संसार मे मेरा किंचित मात्र भी नहीं है, न ही अष्ट कर्म न ही कुछ भी मेरा है। अंतरंग और बहिरंग से भी मेरा कुछ भी नहीं। पांच पांडवो की कहानी के जरिए मोक्ष प्राप्ति को बताया। धर्ममय माहौल में तत्वार्थसूत्र जैसे संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों वाली रचना के नवम अध्याय को हार्दिक जैन ने बड़े ही रोचक और भावपूर्ण तरीके से वाचन किया। उत्तम त्याग पर शास्त्री जी द्वारा भक्तांबर का पठान वाचन किया गया। प्रतिष्ठाचार्य ने णमोकार मंत्र से प्रवचन की शुरुआत करके एक गुरु और शिष्य की कहानी के जरिए सत्य की प्राप्ति का अर्थ बताया। बोले, तत्वार्थसूत्र की रचना करने वाले आचार्य उमासागर जी महाराज जी बताते हैं कि माताप बुद्धि का होना ही परिग्रह है। मन से चीजों का त्याग करना धर्म है। उन्होंने बताया, दान दो तरह के होते हैं करुणा दान तथा मोक्ष दान। दान और त्याग दोनों ही अलग है। त्याग वस्तु को अनुपयोगी, अहितकारी जानकर किया जाता है, जबकि दान उपयोगी हितकारी वस्तु का किया जाता है। उपकार के भाव से अपनी उपयोगी वस्तु किसी को देना दान है। नवभक्ति आहार से पूर्व की जाती है। आहार दान करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान देना चाहिए। उत्तम त्याग के अवसर पर बताया कि ममत्व बुद्धि को छोड़ना ही त्याग है। अंत में नौ बार णमोकार मंत्र का जाप किया।

भोपाल से आई सुनील सरगम एंड पार्टी के णमोकार मंत्र का जिसने सुमिरन कर लिया…, मेरे जीवन की डोर जोड़ दी प्रभु…, संसार में रहकर प्राणी संसार को तज सकता है…, है पारस नाम बड़ा प्यारा…, बसा लो हमको चरणों में तेरे…, ओ तेरे लिए गुरुवर का दर्श चाहिए…, नाम तुम्हारा तारणहारा तेरी प्रतिमा कितनी सुंदर होगी…, ज्ञान का दिया जला दो प्रभु आज मेरे अंतर्मन में…, जब हम मुनि होंगे वन में कहीं होंगे…, मुश्किल है डगर पर प्रभु तेरे साथ हमेशा…, तुम तो हो वीतरागी…, ओ डोले- डोले रे मेरा मन डोले रे…, महावीरा जो भाग जगा देते हैं…, चरणों को छू लूं ऐसी तमन्ना…, निजकल्याण करे तो कुछ तो लोग कहेंगें…, ये चांद सा मुखड़ा…, मोह माया ने कभी चैन से रहने नहीं दिया…, ओ देखा है वीर तेरा दरबार हर बार अब जा के आया मेरे मन को करार… जैसे सुरमय भजनों से रिद्धि-सिद्धि भवन झूमते हुए पूजा-अर्चना के साथ भक्तिनृत्य करने लगा।