तनाव से बाहर आने के लिए यह नशा सबसे अच्छा – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)
बॉस से खिटपिट हुई, एक पैग गटक लिया.. बीवी से हर दिन की नोंक-झोंक से तंग आकर हर रात खाना खाने के बाद घूमने के बहाने एक सुट्टा.. कितना टेंशन है जीवन में, लड़की हाँ नहीं कर रही, इसका समाधान भी सुट्टा.. जिगरी ने सिगरेट न पीने की कसम दी, उसे तोड़कर भी पीता रहा.. दोस्त ने हारकर मेरी संगत छोड़ दी, इसकी चिंता अब दिन-रात खाए जा रही है। चिंता नहीं भाई, नशा खा रहा है। चिंता में होता हूँ, तो और कुछ याद कहाँ आता है सिवाए सिगरेट के.. सिर में दर्द है, दवाई ढूँढने के बजाए आँखें अर्जुन के निशाने की तरह सिगरेट को ही भेदती हैं.. जन्मदिन की पार्टी में दोस्तों को दारू पार्टी चाहिए.. शादी पक्की हो गई, अब भाई हमसे दूर हो जाएगा, इस चिंता को दूर करने में भी दारू काम आती है.. दुनिया के सारे दुखों का छप्पर मेरे ही सिर मढ़ा पड़ा है.. इस दुःख का समाधान भी शराब में छिपा है। ऐसा मैं नहीं कह रहा, ये नित्य घटनाएँ आप सभी अपने आसपास हर दिन देखते ही होंगे।
अक्सर यह देखने में आता है कि किसी समस्या या तनाव का समाधान कुछ लोगों को सिर्फ और सिर्फ नशे में ही दिखता है। फिर आजकल तो यह लाइन भी खूब ट्रेंड में है “ये दुःख काहे खत्म नहीं हो रहा..।” जिसके पास चले जाओ, वह यही बताता है कि उससे अधिक दुखी और तनाव में कोई भी नहीं है। कारण यह है कि खुशी में इंसान अपने से ऊपर वाले को नहीं देखता और दुःख में नीचे वाले को। वह इसका उल्टा करता है, इसलिए तनाव में रहता है। दुःख और तनाव जीवन का हिस्सा है, दुःख है तो सुख भी आएगा और सुख है तो दुःख भी। लेकिन ये कभी-भी जीवन में एक समान नहीं रहते। खुशी में उत्तेजना से दूर रहें और तनाव या दुःख में संयम बाँधे रखें। मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि शराब समाधान होती, तो आज लोगों की जान नहीं ले रही होती।
सन् 80 के दशक की फिल्म शराबी का मशहूर गाना भी चीख-चीख कर यही कहता है कि “नशा शराब में होता, तो नाचती बोतल”। इससे साफ होता है कि प्रसिद्ध संगीतकार बप्पी लाहिरी भी इस गाने पर काम करने के दौरान लोगों को यही बताना चाहते थे कि असली नशा शराब में नहीं है। उन्होंने भी यही सोचा होगा कि कभी तो लोग इसके पीछे का तुक समझेंगे। गाना बड़ा प्रसिद्ध हुआ और 4 दशक बाद भी लोग इसे बड़े चाव से सुनते हैं। और यह लाइन तो सबसे ज्यादा फेमस हुई है, जिस पर भर-भरकर रील्स मिल जाएँगी। लोगों की सोच बस इतनी है कि वे इसे मनोरंजन के तौर पर लेते हैं, इसके पीछे का तथ्य शायद समझना ही नहीं चाहते।
नशा होता है आपकी रुचि में.. नशा जरूरतमंद के काम आने का.. नशा संगीत में डूब जाने का.. नशा पेंटिंग करने का.. नशा किसी खेल में शामिल होने का.. नशा समाजसेवा का.. नशा घर के सामने की बगिया को महकाने का..। हमें हमारी रुचि का नशा हो, तब तो बात बने। इस दिखावे के नशे में इतना दम कहाँ कि हमारे तनाव को हमेशा के लिए छूमंतर कर जाए? नशा उतरेगा और तनाव फिर चढ़ जाएगा। इससे तो अच्छा है कि जब मन बैचेन हो, तनाव की जंजीरें हमें जकड़ी हुई हों, तो वह काम करें, जिससे आपके दिल को खुशी और मन को सुकून मिलता है। यह सुकून कुछ समय का नहीं होगा, लम्बे समय का होगा.. और जब मन शांत हो जाएगा न.. तो तनाव से बाहर आने के समाधान आपके भीतर खुद-ब-खुद आने लगेंगे। तब हो सकता है कि आप यह भी सोच लें कि तनाव का जो पुलिंदा मैं अपने दिमाग में ढोए फिर रहा था, असल में वह इतना भरी था ही नहीं।