आदिवासी वोट बैंक पर कब्जे की सियासत
भाजपा को वर्ष 2018 में आदिवासियों के बीच का खोया जनाधार पाना है, तो वहीं कांग्रेस को तैयार जनाधार बचाना है
मालवा- निमाड़ के आदिवासियों को साधने के लिए महू में होगा बड़ा आयोजन
ब्रह्मास्त्र इंदौर। मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अचानक आदिवासी प्रेम उमड़ पड़ा है। वजह भी साफ है। आदिवासी वोट बैंक के जरिए भाजपा जहां अपना खोया हुआ जनाधार पाना चाहती है, वहीं कांग्रेस के लिए बने बनाए तैयार जनाधार को बरकरार रखने की चुनौती है। फिलहाल दोनों ही पार्टियां आदिवासी- आदिवासी की राजनीति का खेल,खेल रही हैं। आदिवासियों को साधने के लिए भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने आ गए हैं। जनजातीय गौरव दिवस का समापन समारोह 22 नवंबर को मंडला में आयोजित होने जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यहां विभिन्न योजनाओं से आदिवासियों को लाभान्वित करेंगे। सीएम शिवराज ने ऐलान कर दिया है कि आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या भील के बलिदान दिवस पर 4 दिसंबर को पाताल पानी में (महू) बड़ा आयोजन किया जाएगा। पातालपानी टंट्या भील की कर्मस्थली है। वैसे तो यहां हर साल कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
इधर, कमलनाथ 24 नंवबर को आदिवासी विधायकों और 89 ट्राइबल ब्लॉक के पदाधिकारियों की बैठक भोपाल में करने जा रहे हैं। उपचुनाव के पहले कमलनाथ ने आदिवासी अधिकार यात्रा मालवांचल में निकाली थी, जबकि भाजपा ने 18 सितंबर को जबलपुर में सम्मेलन किया था। इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शामिल हुए थे। दोनों ही दलों ने आदिवासियों को साधने की मशक्कत तेज कर दी है, क्योंकि मप्र में जल्दी ही पंचायत चुनाव होने वाले है। इस चुनाव का परिणाम तय करेगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी किसके साथ हैं?
महाकौशल के आदिवासियों पर भी नजर
शिवराज सरकार ने अभी 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस पर बड़ा आयोजन किया था। इसमें प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी शामिल हुए थे। इसके साथ ही पूरे सप्ताह आदिवासी बहुल जिलों में एक सप्ताह तक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जिसका समापन समारोह मंडला में हो रहा है। प्रदेश कार्यसमिति का मुख्य एजेंडा रहेगा पंचायत चुनाव व ट्राइबल एरिया। इस बीच, बीजेपी ने 26 नवंबर को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक बुला ली है। बता दें कि लगभग दो साल बाद सभी की मौजूदगी में प्रत्यक्ष तौर पर यह बैठक होगी। इससे पहले राजगढ़ और उज्जैन में भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक हुई थी।
आदिवासी सियासत की वजह 84 सीट
आदिवासी बहुल इस प्रदेश में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ भाजपा को 16 सीटों पर ही जीत मिली है। 2013 की तुलना में 18 सीट कम है। अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस भाजपा के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है।