कला किसी भी धर्म, जात-पात और रंग-रूप में भेदभाव नहीं करती
‘सिया के राम’ में मेघनाद एवं बाली का अभिनय करने वाले मनीष त्रिवेदी बोले
सीमा मनीष शर्मा
इंदौर। कला किसी भी धर्म, जात-पात, रंग-रूप में भेदभाव नहीं करती इसलिए, आपको अपने कलात्मक कौशल पर भरोसा करना चाहिए। एक कलाकार होने के नाते आप अपनी कला को दुनिया के साथ साझा कर सकते हैं। आप अपनी कला और अपने दृष्टिकोण को साझा करके दुनिया में बदलाव ला सकते हैं। कला परिवर्तन को प्रेरित कर सकती है और दुनिया को सुशोभित भी कर सकती है। यह कहना है भारत सरकार के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के प्रथम श्रेणी अधिकारी मनीष त्रिवेदी का। श्री त्रिवेदी इंदौर के होलकर साइंस कॉलेज से गणित में स्नातकोत्तर है और उन्होंने मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान प्राप्त िकया। विद्यार्थी काल से ही उन्हें कला, साहित्य, खेल, अभिनय के प्रति विशेष रुचि रही। साथ ही सेवा और संस्कार उन्हें परिवार से विरासत में मिले। श्री त्रिवेदी से हुई विशेष चर्चा के कुछ अंश-
पढ़ाई के अलावा अन्य कार्यों में कैसे रुचि?
जवाब – हर व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है, बस जज्बा और परिवार गुरुजनों की सीख होनी चािहए। मैंने भी पढ़ाई के साथ-साथ कला, साहित्य, खेल एवं अभिनय के प्रति निरंतर रुझान रखा और कई बार सराहना भी मिली।
कराटे के भी खिलाड़ी कैसे बने?
जवाब – कराटे के पीछे मेरी बचपन से ही विशेष रुचि रही और यह आत्मरक्षा के लिए भी जरूरी है। कई कराटे स्पर्धाओं में भाग लिया। हर बार माता-िपता ने मेरा हौंसला बढ़ाया।
सम्मान भी मिला?
जवाब- बिल्कुल मिला। कोई भी कार्य यदि निष्ठा, परिश्रम और लगन से िकया जाए तो सम्मान भी मिलेगा। मध्यप्रदेश लोक निर्माण विभाग द्वारा आयोजित इंडियन रोड्स कागं्रेस के अधिवेशन 2015, 2022 के सफल आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने पर शासन द्वारा सम्मानित किया गया।
महानाट्य में अभिनय भी किया?
जवाब- अभिनय करना और किरदारों के हुबहु ढालना मुझे शुरू से ही पसंद है। प्रतिष्ठित संस्था रंगमंच आर्ट ऑफ़ ड्रामा के प्रसिद्ध निर्देशक संदीप दुबे की प्रेरणा से भव्य महानाट्य ‘सिया के राम’ में मेघनाद एवं बाली का अभिनय किया। जिसका यू ट्यूब चैनल पर भी प्रसारण किया जाएगा।
धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया?
जवाब – महाभारत-रामायण तो करीब-करीब सभी को ज्ञात है और लोगों ने इसे पढ़ा है। हमारे धार्मिक ग्रंथ हमारी अगली पीढ़ी को संस्कार और विरासत पढ़ाने को प्रोत्साहित करते हैं। ग्रंथों से पारिवािरक मूल्य सीखने की अावश्यकता है। नई पीढ़ी को माता-िपता, भाई-बहन और अन्य सभी रिश्तों का महत्व समझे और समृद्ध परिवार, समाज और देश के रचना में अपना योगदान दे।
चुनौितयां भी मिली होगी?
जवाब – चुनौितयां हर किसी के जीवन और जिंदगी में आती है। स्वयं भगवान श्रीराम को राजपाठ छोड़कर वनवास मिला और कृष्ण को भी कारागार में जन्म मिला, फिर इंसान क्या है। मुझे भी कभी-कभी उच्च प्रतिस्पर्धा के कारण चुनौितयां मिली, उसका मैंने पूरी ईमानदारी से मुकाबला किया। प्रतिभा या कला कभी खत्म नहीं होती। निरंतरता के लिए सतत अभ्यास की जरूरत है। समाज में अपनी कला के जरिये बदलाव लाने की कठिन चुनौती है। कला किसी भी धर्म, जात-पात, रंग-रूप में भेदभाव नहीं करती। आपको अपने कलात्मक कौशल पर भरोसा करना चािहए।