शिप्रा में केमिकल का जहरीला पानी…मिलने से रोकने में अफसर नाकाम
उज्जैन। शिप्रा का पानी काला पड़ गया, प्रदूषित हो गया, गंदा हो गया। यह नई बात नहीं आए दिन ही ऐसा होता है। क्योंकि हमारे सरकारी विभाग के अफसर ही शिप्रा में कान्ह नदी का केमिकल युक्त जहरीला पानी रोकने में नाकाम रहेे। अफसर जो उपाय करते हैं वे न तो स्थाई है और न ठोस। ऐसे में शिप्रा में इंदौर से सांवेर होकर उज्जैन की तरफ आ रही कान्ह नदी का गंदा पानी सीधे शिप्रा में किसी भी तरह से मिल ही जाता है और यह आगे जाकर शिप्रा के पानी को और अधिक प्रदूषित व गंदा बना देता है। त्रिवेणी संगम से लेकर शिप्रा के रामघाट और इसके आसपास के सभी घाटों पर स्नान के लिए जाने वाले श्रद्धालु गंदे पानी को देखकर नहाने का मन ही बदल लेते हैं। क्योंकि यह पानी नहाने तो क्या स्नान के लायक भी नहीं होता है।
धर्म-शास्त्र में बताया शिप्रा मोक्ष दायिनी….यहां अमृत गिरा, वर्तमान में नाले मिल रहे..
हमारे धर्म-शास्त्रों में लिखा है कि शिप्रा नदी मोक्ष दायिनी है, क्योंकि इसमें अमृत की बूंदें गिरी थीं। यहीं कारण है कि इसी शिप्रा के तट पर हर 12 वर्ष में सिंहस्थ का मेला लगता है। लेकिन इसी शिप्रा की वर्तमान हालत यदि कोई देख ले तो ये सब बातें भूल जाए। तमाम कोशिश व प्रयासों और करोड़ों रुपए लगाने के बावजूद शिप्रा का शुद्धिकरण नहीं हो पाया है।
गऊघाट और लाल पुल पर औद्योगिक क्षेत्र…का गंदा पानी मिल रहा, इससे काला-व लाल…
हकीकत यह है कि शिप्रा का शुद्धिकरण करना तो दूर, जिम्मेदार इस नदी में मिलने वाले प्रदूषित पानी तक को रोक पाने में नाकाम हैं। कान्ह नदी के माध्यम से त्रिवेणी