पं. मदनमोहन मालवीय निर्वाण दिवस

‘‘न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं ना पुनर्भवम् । कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्ति नाशनम”।।
मुझे न तो राज्य की कामना है, न स्वर्ग की और न ही मोक्ष की । मेरी तो बस यही कामना है कि दुःख से संतप्त प्राणियों के कष्ट को दूर कर सकूं । उपरोक्त ध्येय वाक्य को जीवन का ध्येय बनाकर ‘‘महामना’’ की विशिष्ट संज्ञा पाई तथा उत्तरार्द्ध में देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘‘भारत रत्न’’ से नवाजे गये पं. मदन मोहन मालवीय से महामना व भारत रत्न तक का सफर कड़े संघर्ष का परिणाम है । उनके कई प्रेरक प्रसंग है जो हमें प्रोत्साहित करते हैं ।
घर में भक्तिमय वातावरण व ब्राह्मण परिवार होने से भोजन, भगवान के भोग के उपरान्त ही मिलता था । अतः मठा व बासी रोटी विद्यार्थी जीवन में महामना का मुख्य व प्रिय भोजन था । अपने कठोर परिश्रम व योग्यता के द्वारा उन्होंने लगभग एक हजार एकड़ से अधिक के क्षेत्र में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की जहाँ सौ से अधिक इमारतें, हजारों शिक्षक, लाखों दुर्लभ ग्रन्थ व विभिन्न संकायों के शिक्षण कार्य की शुरुआत की। यह निश्चित ही गर्व का विषय है कि उस दौर में इस विश्वविद्यालय का निर्माण लगभग दो करोड़ की राशि से हुआ और इस तरह आगे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक के रूप में विशिष्ट पहचान स्थापित की । उनका दूसरा रुप यह भी था एक ओर तो वे धन संग्रह में जी जान से जुटे थे, परन्तु व्यक्तिगत तौर पर एक बार विपरीत स्थितियों में किसी जरुरतमंद मित्र के परिवार की मदद के लिए घर में उपलब्ध धातु के भगवान को व्यावहारिक रुप में उपयोग में ले लिया ताकि उसे संकट से उबारा जा सके, वहीं देश सेवा के लिए क्रान्तिकारियों की ओर से न्यायालय में सशक्त तर्कपूर्ण वकालत कर सैकड़ों देश भक्तों को फाँसी के फन्दे से मुक्त कराया और उनकी कार्यशैली से अंग्रेज वकील व न्यायाधिकारी भी खासे प्रभावित हुए। इन सबके मध्य चूंकि वे मालवा क्षेत्र से संबंध थे अतः ‘‘मालवीय’’ उपनाम को वरीयता दी व देश में प्रतिष्ठा पाई वहीं उनकी वेशभूषा भी पारंपरिक थी, साफा, अचकन, पायजामा उन्हें विशिष्ट पहचान प्रदान करता रहा और हिन्दी, अंगे्रजी के अलावा ‘‘मालवी बोली’’ भी मिठास में घुली थी। सन् 1932-33 में काशी में हिन्दू-मुसलमानों का दंगा हुआ और कई दिनों तक जारी रहा । सहायता के लिए जो कमेटी बनी उसका अध्यक्ष महामना को बनाया गया । महामना को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ-साथ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक व अधिवक्ता के रुप में मिली। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव डालने के पूर्व ही वह अपना कार्य शुरु कर चुके थे। गाँव-गाँव, शहर-शहर जाकर धन संग्रह करना उनका प्रमुख उद्देश्य था ताकि इस महान लक्ष्य में किसी प्रकार की वित्तीय बाधा न आए। वे जब इस संदर्भ में हैदराबाद के निजाम से मिले तब निजाम ने उनकी हैसियत के हिसाब से बेहद कम राशि की पेशकश की तब महामना ने इसे नकार दिया और आगे जा रही शवयात्रा में जाकर भीड़ में से लुटाये जा रहे सिक्के/रेजगारी इकट्ठी कर निजाम को शर्मिंदा कर दिया तब निजाम ने माफी माँगकर अपनी क्षमता व रुतबे के हिसाब से सहयोग दिया। वहीं जब वर्ष 1920 में वे इन्दौर आए तब वर्तमान गाँधी हाॅल (तात्कालीन एडवर्ड हाॅल) में समारोह आयोजित किया गया जिसे महराजा तुकोजीराव होल्कर (तृतीय) के मार्गदर्शन में लोगों ने यथाशक्ति धन दिया। वहीं क्षेत्र के हुकुमचन्द/कल्याणमल कासलीवाल परिवार ने भी एक निश्चित धनराशि से ब्याज अर्जित कर सहयोग दिया। देश सेवा के लिए क्रान्तिकारियों की ओर से न्यायालय में सशक्त तर्कपूर्ण वकालत कर सैकड़ों देश भक्तों को फाँसी के फन्दे से मुक्त कराया और उनकी कार्यशैली से अंग्रेज वकील व न्यायाधिकारी भी खासे प्रभावित हुए। इन सबके मध्य चूंकि वे मालवा क्षेत्र से संबंध थे अतः ‘‘मालवीय’’ उपनाम को वरीयता दी व देश में प्रतिष्ठा पाई वहीं उनकी वेशभूषा भी पारंपरिक थी, साफा, अचकन, पायजामा उन्हें विशिष्ट पहचान प्रदान करता रहा और हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा ‘‘मालवी बोली’’ भी मिठास में घुली थी। वे निश्चित रुप से सरस्वती उपासक थे, जो कि बनारस हिन्दू विश्वद्यिालय के कुलपति बने, प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान व ‘‘इण्डियन यूनियन’’ के संपादक रहे तथा वकालत के पेशे को भी देशहित में उपयोग किया। हिन्दी के संदर्भ में ले. गवर्नर को ज्ञापन व छात्रों को देशप्रेम की प्रेरणा देने के परिणामस्वरुप उन्हें प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी। हिन्दी साहित्य सम्मेलन मुंबई (तात्कालीक बम्बई) की अध्यक्षता की व महात्मा गाँधी के साथ में गोलमेज परिषद लंदन में प्रतिनिधित्व किया और रजत जयंती समारोह में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बी एच यू) में गाँधी के साथ-साथ उनका उद्बोधन बेहद सराहा गया। वहीं देश में गौ रक्षा मण्डल की स्थापना की। महामना इस तरह मनसा-वाचा-कर्मणा एक थे – वे सचमुच महामना थे। हाल ही में शुरू की गई महामना एक्सप्रेस जो कि एक द्रुतगति की रेलसेवा है जिसके माध्यम से महामना के नाम को जीवंत बनाने का अभिनव प्रयास है। उनकी 150 वीं जयंती पर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने 5 रु. व 150 रु. के विशेष सिक्के महामना पर जारी किए जो प्रचलन में हैं।
महामना के सन्दर्भ में वर्तमान परिदृश्य में भी वर्णन किया गया है ।दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल व तत्कालीन लोकसभा चैनल ( अब संसद टेलीविजन) द्वारा महामना पर एक वृतचित्र बनाया गया है।
उत्कृष्ट कार्यों और श्रेष्ठतम उपलब्धियों के कारण
कृतज्ञ राष्ट्र को महामना सदैव स्मरणीय रहेंगे।

निर्लेश तिवारी