चुनाव में सब शिप्रा की बात करते लेकिन शुद्धिकरण आज तक नहीं
उज्जैन। धार्मिक नगरी उज्जैन की पहचान पहले महाकाल दूसरी शिप्रा इन दिनों से ही है। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में तो करोड़ों रुपए लग रहे, विकास भी हो रहा और श्रद्धालु इससे खुश भी है। लेकिन क्या कभी पुण्य सलिला शिप्रा का शुद्धिकरण हो पाएगा। यह सवाल शायद उज्जैन हर उस नागरिक के मन में अभी होगा जो धर्म के प्रति जरा भी आस्था रखते हो। क्योंकि देश व दुनियाभर से यहां आने वाले लाखों लोग महाकाल व शिप्रा को ही देखना पसंद करते हैं। अभी विधानसभा चुनाव की धूम है। हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों ने अपने घोषणा पत्रों में शिप्रा शुद्धिकरण का जिक्र प्रमुखता से किया है। लेकिन इसकी क्या ग्यारंटी की शिप्रा पूर्ण से शुद्ध हो पाएगी। क्योंकि यह कोई नई बात नहीं है। पिछले 20-25 सालों में लोकसभा, विधानसभा के कितने ही चुनाव हो गए। और हर बार यहीं घोषणा प्रत्याशी दोहराते हैं पर शिप्रा शुद्धिकरण को लेकर कोई ठोस काम आज तक नहीं किया जा सका।
शिप्रा में नाले और कान्ह नदी का…जहरीला पानी आज भी मिल रहा…
शिप्रा में शहर व बाहर के गंदे नाले मिलना आज तक कोई भी बंद नहीं कर सका। इंदौर से आ रही कान्ह नदी का केमिकल युक्त जहरीला पानी त्रिवेणी के पास से आज भी मिल रहा है।
चुुनाव बाद शिप्रा की तरफ झांकते….नहीं ये नेता, श्रद्धालु तो आस्थावान…..
हर बार शिप्रा को साफ करने के वादे कर नेता पहले घोषणा करते हैं। जनता को विश्वास में लेते हैं और चुनाव जीतने के बाद शिप्रा की तरफ झांक भी नहीं देखते कि क्या स्थिति है। बेचारे श्रद्धालु तो धर्म और आस्था से बंधे है। यहां देव-दर्शन करने आते है।