टाटा कंपनी का कहर…कार्तिक मेले का बना रोड़ा तो कही नारकीय जीवन जीनो को लोग मजबूर

उज्जैन  शहर का सिवरेज ठीक करने के लिए काम कर रही टाटा कंपनी से लोग काफी परेशान है टाटा कंपनी की ढील पोल..खुदाई के कारण..शहर में कई जगह बने गड्डे मुसीबत बने हुए है। वही इंदौर रोड स्थित त्रिवेणी हिल्स कॉलोनी के रहवासी इन दिनों नरकीय जीवन जीने  को मजबूर है।

सडको पर जमा पानी बारिश की दिला रहा याद…गंदगी के साथ बिमारी का भी भय…

दरसल यहां सिवरेज के पानी से पुरे इलाके में सडको पर पानी जमा हो गया है वाही  लोगों के घर के बाहर बाड़ सी आगई है।  छोटे छोटे बच्चे स्कूल जाने के लिए परेशान होते दिखाई दे रहे है जमा पानी से बदबू पसरी गंदगी और मछरो के प्रकोप बीमारियों  से लोग  डरे सहमे से हे रहवासियों का कहना है की  इन सभी समस्याओ से हमने पार्षद सहित शासन प्रशासन से कई बार शिकायत की बावजूद यहाँ के हालत अब तक जस के तस बने हुए है जमा पानी से एसा लगता हे जेसे मानो बारिश का मोसम हो अब रहवासी इस बड़ी समस्या से निजात पाने की प्रशासन से गुहार लगा रहे है।

 

कार्तिक मेला इस बार लग पाएगा या नहीं यह कह पाना फिलहाल मुश्किल….

कार्तिक मेले की व्यवस्थाओं पर टाटा कंपनी का प्रोजेक्ट रोड़ा बन गया है। रोड की खुदाई से झूले नहीं लग पा रहे है और व्यापारी परेशान हो रहे है। उज्जैन में कार्तिक मेला कई वर्षों से लगता आ रहा है। इस वर्ष टाटा प्रोजेक्ट और आचार संहिता मेले की राह में रोड़ा बनकर खड़े हुए हैं। व्यापारी मेले की तैयारी के लिए झूले और अन्य सामान लेकर पहुंच गए हैं लेकिन टाटा प्रोजेक्ट का काम मेला ग्राउंड के आसपास चलने के कारण चारों तरफ गड्ढे खुले हुए हैं जिसकी वजह से व्यापारी मेले की तैयारी नहीं कर पा रहे हैं वही नगर निगम द्वारा राज्य आयोग को पत्र लिखकर मेले की अनुमति मांगी है, लेकिन फिलहाल मेले की अनुमति के लिए कोई भी पत्र शासन से नहीं पहुंचने के कारण मेला इस बार लग पाएगा या नहीं यह कह पाना बहुत मुश्किल है। इधर व्यापारियों ने टाटा द्वारा खोदे गए गड्ढे का भी विरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह की अगर गड्ढे खुले हुए होंगे तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है इस बार प्रशासन मेला नहीं लगने देना चाहता है इसलिए इस तरह से गड्ढे खोदे हुए हैं और किसी भी जिम्मेदार का इस पर कोई ध्यान नहीं है। व्यापारियों ने कहा कि हम 30 वर्षों से लगातार कार्तिक मेले में भाग लेते हैं लेकिन इस बार लग रहा है कि हमें बैरंग ही लौटना पड़ेगा।

रिपोर्ट विकास त्रिवेदी