सन्तान का बेहतर लालनपालन (गुड़ पेरेंटिंग)
संदर्भ : माता पिता को शर्मसार कर देने वाले कृत्य और समाज में आ रहे भयावह परिवर्तन के कुछ मूलभूत कारणों पर विचार
हाल ही में एक स्कूल में चौथी कक्षा के महज आठ नौ साल के बच्चो द्वारा अपने ही सहपाठी पर किए गए घातक हमले की खबर मिडिया की सुर्खियों में है। यह इस तरह का पहला मामला नहीं है। दिनों दिन इस तरह के अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है और साथ ही इन बाल अपराधियों की घटती उम्र के साथ समाज के कर्णधारों के माथे पर शिकन बढ़ती जा रही है।
विद्यालयों में बढ़ते हुए अपराध और घटती उम्र के बाल अपराधी। पूरे देश में यह एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है। इन शर्मनाक और गंभीर घटनाओं के बारे में एक अभिभावक के रूप में अपनी जिम्मेदारी से पूरी बेशर्मी से मुंह मोड़ते हुए हम शिकायत करते है कि हमारे नीति निर्धारक दोयम दर्जे के है। हम यह भी कहते नहीं अघाते कि इन समस्याओं का उत्तरदायित्व सरकार की बुरी नीतियों का है। हमारे विद्यालयों के शिक्षक अपना काम ठीक से नहीं कर रहे ऐसा कर हम अपना दामन बचाने की हास्यास्पद असफल कोशिश करते नजर आते हैं।
इस विषय पर गम्भीरता से इसकी तह तक जाकर समझा जाए तो इन बाल अपराधियों के निर्माण की जिम्मेदारी सरकार या शिक्षकों पर नहीं बल्कि हमारे अपने ही घरों और परिवारों पर ही आयेगी। वस्तुत: यह कोई बाहरी नहीं बल्कि हमारी अपनी पारिवारिक, घरेलू और आंतरिक समस्या है। बच्चों को जन्म से ही अच्छा बुरा समझाने की जिम्मेदारी किसकी है। सबसे पहले माता पिता की फिर परिजनों की फिर शिक्षक की फिर दोस्तों की फिर समाज की और अंत में सरकार की।
किसी बात को समाज नहीं नकारता मतलब या तो बदलाव आ रहा है या विकृति आ रही है, यदि विकृति आ रही है और समाज को बदलना है तो भी संस्कार देने की शुरुआत अपने घर से ही करना होगी । जो चीज गलत होती है वो चलन से बाहर हो जाती है समाज स्वयं उसे नकार देता है। जैसे कि खोटा सिक्का । लेकिन यदि किसी व्यक्ति को अच्छे और बुरे में फर्क बताया ही नहीं गया हो तो वह अनजाने में बुराई की अपना लेता है ।
आजादी मिलने के बाद हम सबने अपनी यह जिम्मेदारी निभाने में कोताही कर अपनी आगामी पीढ़ी के प्रति एक अक्षम्य अपराध किया है। हमें स्वीकारना होगा कि अपना कैरियर बनाने व सफलता प्राप्त करने के तनाव से उपजी अति व्यस्तता के चलते हम बच्चों को ठीक से संस्कार और नैतिक शिक्षा प्रदान नही कर पाए है। हम सबने एक जूनून के तहत बिना रुके लगातार काम किया है। हमने ठान लिया था कि जो गरीबी हमारे माता पिता ने देखी थी, जो अभावग्रस्त बचपन हमने जिया था वो हमारे बच्चे नहीं जिएंगे। लेकिन जीवन की इस आपाधापी भरी भागदौड़ में हमने हमारी सबसे बड़ी बच्चों के संस्कार देने की जिम्मेदारी को सिरे से भूला दिया।
किसी भी समस्या के लिए सरकार को दोष देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेने की बजाय, क्या हमने यह सोचा कि हम अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा रहे हैं। क्या हम अपने बच्चों उस किस्म के गुणवान मानव बना रहे है जिनकी अपेक्षा हम दूसरों से करते है। बल्कि हम अपने बच्चों को संस्कारों की बजाय भौतिक सुविधा और धन अर्जन को प्राथमिकता देने की शिक्षा देते हैं । हम अपनी आने वाली पीढी के मन संस्कार का जज्बा भरने में पूर्णतया नाकाम रहे है, शायद नाकाम सही शब्द नहीं है, हमने तो इस बारे में सोचा ही नहीं और हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कार भरने का कोई प्रयास तक नही करते तो नाकाम भी क्योंकर हुए ।
अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर भले नागरिक नहीं बनायेगे तो भविष्य का समाज अपराधियों से भरता जाएगा। नन्हे बच्चे देखकर (आब्जर्व करके) सीखते है वो जो कुछ अपने आस पास घटित होते हए देखते है वो उनके अवचेतन मन में स्थायी जगह बना लेता है, जो बड़े होने पर उनके व्यवहार में परिलक्षित होता है।
आप अच्छे व्यवहार, अच्छे आचरण की उम्मीद किनसे कर रहे है वो लोग जो अपेक्षित रूप से संसकारित है ही नही, वो तो वही दे पाएंगे ना जो उन्हें आता है, जो संस्कार हमारे परिवारों ने अपनी संतानों को दिए है वो वैसा ही व्यवहार करेंगे ।
तो मुद्दे की बात यह है कि बेहतर और अच्छे आचरण वाले नागरिकों का निर्माण सबसे पहले होता है वहाँ जहां उसने जन्म लिया है, जहां उसकी परवरिश हो रही है, और इस सबमें सबसे महत्वपूर्ण इकाई है परिवार, परिवार में सन्तान का लालन पालन जिस प्रकार हुआ है वैसे ही नागरिक हमें मिलते हैं, बात किसी एक परिवार की नहीं है इसे व्यापक रूप से देखना होगा।
अभिभावक के रूप में हमें स्वयं अपने व्यवहार को अपने बच्चो के सामने आदर्श रूप में प्रस्तुत करना होगा। हमें जन्म से ही बच्चो के साथ समय व्यतीत करना होगा। एकल परिवार की बजाय संयुक्त परिवार को तजरीह देना होगी। कहा जाता है कि दादा दादी, नाना नानी और परिवार के बुजुर्ग सस्कारों के गुरुकुल होते है, नैतिक शिक्षा के विश्वविद्यालय होते है। भौतिक पूंजी और संसाधन जुटाने की इस चूहा दौड़ में हम अपनी समझ मूल्यवान संपत्ति “संस्कारित बच्चे” या अपने बच्चों का भविष्य खो दे रहे हैं। समय आ गया है धन संपत्ति बनाने में दिए जा रहे समय में से कुछ समय निकालने का और अपने भविष्य (बच्चों) को संवारने का। धन थोड़ा कम भी कमाएंगे तो कुछ बिगड़ेगा नहीं लेकिन संस्कारों के अभाव में आपके बच्चे जेल गए तो यह धन यह संपदा आपके हाथ पछतावे के अलावा कुछ नहीं छोड़ेगी।