ब्रह्मास्त्र उज्जैन। अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या शनिवार का आने से यह शनिश्चरी अमावस्या कहलाएगी जो कि 4 दिसंबर को आ रही है। यह अनुराधा नक्षत्र सुकर्मा योग नाग करण वृश्चिक राशि के चंद्रमा की साक्षी में रहेगी।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला ने बताया कि अमावस्या तिथि दोपहर 1:22 तक रहेगी। इस दृष्टि से यह सूर्यास्त काल तक मानी जाएगी। इस अवसर पर अलग-अलग प्रकार के ग्रह नक्षत्र का प्रभाव रहेगा। क्योंकि अगहन में इस प्रकार के अमावस के योग बहुत कम बनते हैं। इस दृष्टि से यह दुर्लभ योग की श्रेणी में आएगी।
विशेष पुण्य काल की तिथि विशेष फल देने वाली रहेगी
अगहन मास भैरव से संबंधित आराधना का भी माना जाता है। इस दृष्टि से यह तिथि विशेष है। उसका मुख्य कारण यह भी है कि शनिवार के दिन अमावस्या तिथि का होना व अगहन मास भैरव विशेष होने से ये खास होगा। इस पूरे माह में भैरव का प्रभाव जागृत तंत्र के रूप में जाना जाता है। या यह भी कहा जा सकता है कि तंत्र सिद्धांत के अनुसार इस माह में भैरव शक्ति का विशेष प्रभाव रहता है। इस दृष्टि से इस दिन शनि महाराज की पूजन के साथ-साथ भैरव की पूजन करने का भी फल प्राप्त होता है।
तीन दशक के बाद बनते हैं इस प्रकार के खास योग-संयोग
वर्तमान में शनि मकर राशि पर मार्गी होकर के गोचर कर रहे हैं। साथ ही श्रवण नक्षत्र के दूसरे चरण में इनका प्रभाव विद्यमान है। ग्रहों की गणना या परिभ्रमण की गणना से देखे तो यह अमावस्या शनिवार के दिन तकरीबन 3 दशक के बाद बन रही है। क्योंकि मकर राशि के शनि में मार्गशीर्ष में अमावस्या पर शनिवार का दिन बहुत कम देखने को प्राप्त होता है। इस दृष्टि से यह विशेष मानी गई है। इस दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
शनि की साढ़ेसाती, ढैया और महादशा वाले ले सकते हैं लाभ
जिन जातकों की जन्म कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैया चल रहा है या शनि की महादशा लगी हुई है। ऐसे जातकों को शनि की विशेष साधना करनी चाहिए। साथ ही शनि के वैदिक अनुष्ठान का भी आश्रय लिया जा सकता है। अनुष्ठान तथा शनि की वस्तुओं के दान करने का विशेष फल होता है। यदि अनुष्ठान नहीं कर सकते हैं तो शनि स्तोत्र का पाठ, महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ, शनि अष्टक का पाठ, शनि के बीज मंत्र का पाठ आदि करने से शनि महाराज की अनुकूलता होती है तथा प्रगति में बाधाओं का निराकरण होता है।
अमावस्या पर्व की रात में मंगल का भी राशि परिवर्तन हो रहा है
ग्रहों का भी विशेष संयोग विचित्र बनता है शनिश्चरी अमावस्या की रात्रि में ही मंगल का तुला राशि को छोड़कर वृश्चिक राशि में प्रवेश होगा वृश्चिक राशि मंगल की स्वयं की राशि है वृश्चिक में आते ही सूर्य, मंगल, बुध, केतु की चतुर्ग्रही युति बनेगी इसका प्रभाव रियल स्टेट तथा एग्रीकल्चर से संबंधित वस्तुओं के अनुक्रम में दिखाई देगा।