निगम : साल करता नसबंदी करने का 25 लाख का बजट पास..फिर भी बढ़ रही कुत्तों की संख्या…अब तक सवा करोड खर्च

उज्जैन। शहर में आवारा कुत्तों की संख्या कम करने के लिए नगर निगम द्वारा हर साल नसबंदी अभियान चलाया जाता है इसके लिए नगर निगम में हर साल 25 लख रुपए का बजट भी स्वीकृत किया जाता है। लेकिन शहर में कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है शहर में 4000 से बढ़कर अब कुत्तों की संख्या 25000 हो गई है। जिसके चलते शहर की सड़के गलियों में कुत्तों का झुंड बड़ी तादाद में नजर आता है । इससे आम जन जीवन को भी खतरा है लेकिन नगर निगम का इस और कोई ध्यान नहीं है इससे यह पता चलता है कि नगर निगम द्वारा कुत्तों की नसबंदी का अभियान सिर्फ कागजी कार्रवाई तक ही सीमट कर रह चुका है।

निगम: नसबंदी के नाम पर सवा करोड़ अब तक बर्बाद.. बढ़ती जा रही कुत्तों की तादाद..माल के साथ जान को भी खतरा..  

यहां बता दे नगर निगम की ओर से पिछले 5 सालों में खर्च किए गए सवा करोड़ रुपए बर्बाद हो गए हैं खास बात यह है कि निगम द्वारा अनुबंधित ठेका एजेंसी हर दिन 8 से 10 कुत्तों को ही पकड़ पाती है। ऐसे में 5 साल बाद भी शहर वासियों को आवारा कुत्तों के आतंक से मुक्त नहीं किया जा सका । बताया जा रहा है कि यदि शहर में कुत्तों की नसबंदी कर उनकी संख्या पर नियंत्रण लगाने का कार्य जल्द करना है तो इसके लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान कर अधिक दलों को इस काम में लगाना होगा ।जानकारों की माने तो आधी अधूरी नसबंदी से कुत्तों की संख्या को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। पूरे मेल फीमेल डॉग की नसबंदी होगी तभी इनकी संख्या  पर अंकुश लगेगा पहले हिंसक कुत्तों को निगम ही मरवा देती थी। वहीं वार्ड के लोग भी जहर देकर समस्या का समाधान कर लेते थे लेकिन अब कुत्तों को मारने पर प्रतिबंध लग गया है। इसके लिए इनकी संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गई है यह भी इनकी आबादी तेजी से बढ़ाने का मुख्य कारण है जिसके  चलते शहर के कई ऐसे इलाके हैं जहां से रात को निकालना किसी खतरे से कम नहीं । शहर के कई  ऐसे इलाके हैं जहां रात को सड़कों और गलियों में कुत्ते के झुंड बैठे हुए अपने शिकार की तलाश में रहते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जानकार लोग इन कुत्तों के हमले से बचने के लिए उस रास्ते से नहीं निकलते हैं। वही अपने चित्र परिचित को भी रात में कुत्तों के बने इलाकों से नहीं निकलने के सलाह देते हैं ।बहरहाल जो भी हो हर साल का बजट पास और बढ़ती कुत्तों की संख्या पर एक बड़ा सवाल नगर निगम की ओर खड़ा होता है।

रिपोर्ट विकास त्रिवेदी