गौ संरक्षण के लिए उठाए गए कदम नाकाफी, और प्रयास की जरूरत मप्र गौ सेवा आयोग अध्यक्ष के उज्जैन आगमन पर उनके समक्ष सेवा धाम आश्रम संचालक सुधीर भाई ने चिंता व्यक्त करते हुए दिए सुझाव

उज्जैन। गोवंश के संरक्षण के लिए अब तक बहुत प्रयास किए गए, लेकिन वे नाकाफी हैं। मध्यप्रदेश में गोवंश की हालत चिंताजनक है। उज्जैन के सेवा धाम आश्रम के संचालक सुधीर भाई ने गौ सेवा आयोग मध्यप्रदेश के अध्यक्ष के उज्जैन आगमन पर उनके समक्ष चिंता जाहिर करते हुए मध्य प्रदेश सरकार से अपील की है कि गौ संरक्षण के लिए और प्रयास करने होंगे। सुधीर भाई ने उन्हें जानकारी देते हुए बताया कि देशभर में गौ सेवा के क्षेत्र में खूब बड़ा काम हुआ है। गौ माता के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम हो रहे हैं। सुधीर भाई ने बताया कि उज्जैन में मध्य प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष आए।

15 रुपये में तो 2 किलो भूसा भी नहीं आता

सुधीर भाई ने बताया कि उन्होंने आयोग के अध्यक्ष से निवेदन किया कि मध्य प्रदेश गौ सेवा आयोग और संवर्धन बोर्ड द्वारा 1 गोवंश के लिए मात्र 15 रुपये उनके लिए दिया जाता है। 15 रुपये में किसी भी तरह से गौ संरक्षण संभव नहीं है। एक अच्छे गोवंश को रखने के लिए कम से कम 10 से 15 किलो भूसे की आवश्यकता होती है। इंदौर में इस समय 9 रुपये किलो भूसा मिल रहा है। किसी भी तरह से 15 रुपये में गोवंश का पालन नहीं हो सकता। 2 किलो भूसा भी नहीं आएगा। इस स्थिति में अधिकांश गोवंश जहां व्यवस्था नहीं है, भूख से तड़प रहे हैं। मर रहे हैं। उनको न चारा है, न पानी है। गौशालाओं की स्थिति इतनी खराब है कि गौशालाओं में दान देने वालों की भी कमी है।

उद्योगपतियों की सेवा लें

इसके अलावा उनके पास जमीन नहीं है। गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष को उन्होंने सुझाव दिया है कि प्रत्येक जिले में कई उद्योगपति हैं, उनके जिम्मे गौशालाओं को कर देना चाहिए। जो अपने सीएसआर की राशि गौशालाओं में खर्च करें। जो गौशालाओं को संरक्षित कर दें, ताकि गोवंश को भरपेट भोजन मिलेगा और उद्योगपतियों की राशि का भी सदुपयोग हो जाएगा। देवी- देवताओं का वास गोवंश में होता है। उनका आशीर्वाद उन्हें मिलेगा।

भट्टों में भूसा जलाया नहीं जाए

अभी उद्योगों में ईंट के भट्टों में लगातार भूसा और चारा जलाया जा रहा है। फसल आती है, उसके पहले ही चारे की, उसके भूसे की कीमत लगा दी जाती है। किसी भी रूप में किसी भी उद्योग में भूसे को जलाने के काम में नहीं लेना चाहिए। यह गाय का खाद्यान्न है। अभी किसान लालच में आ गए हैं। पहले फ्री में देते थे। गौशाला में जाकर खुद डाल कर आते थे। कलेक्टरों के माध्यम से ऐसी नीति बनाना चाहिए कि उद्योग के अंदर 1 किलो भूसा भी जलाया न जा सके। इसकी मानिटरिंग का काम जिला कलेक्टर तथा अनुविभागीय अधिकारियों को सौंप देना चाहिए।

दूध नहीं देने वाली या बांझ गाय का पालन नहीं होता

जब गाय दूध नहीं देती है और बांझ हो जाती है उस समय ग्रामीण उसे छोड़ देते हैं। उनके हाड़- मांस तक निकल आते हैं। वह लोगों के खेतों में घुसती है और किसान उन्हें डंडे मारते हैं। खेतों से निकाल देते हैं। क्या यह गौ संरक्षण नीति है।

बंद की जा सकती है गौ हत्या

इसी तरह गौ हत्या को बंद किया जा सकता है। जब किसान खेतों से निकाल देते हैं और गोवंश सड़कों पर विचरण करती है, तो गौ हत्यारे उन्हें गाड़ियों में भरकर ले जाते हैं। हम उनको कुछ भी नहीं कर सकते। रोज-रोज गोवंश प्रताड़ित हो रहे हैं। इसलिए इसका नियंत्रण रखना जरूरी है। इसके लिए गौ सेवा आयोग को संबंधित ग्राम पंचायतों से जवाब मांगना चाहिए। सरपंच और सचिव इसके लिए जवाबदार होंगे कि एक भी गोवंश अगर खेतों में घुसे तो उन्हें मारा न जाए। उनको जब रोज डंडे से मारेंगे तो क्या हालत होगी?

ऐसे संरक्षित हो सकता है गोवंश

जब सीएसआर में उद्योगपति गौशालाओं को पैसा देने लगेंगे, गौ संरक्षित करेंगे, गौशालाओं के पालक बन जाएंगे, तो इस समस्या का समाधान आसानी से होगा। अगर शासन 15 रुपये एक पशु के लिए देती है तो उस राशि को बढ़ाना चाहिए।