पोस्तादाना हो सकता है महंगा, अफीम की फसल में काली मस्सी रोग -संभाग में मंदसौर –नीमच जिला में सर्वाधिक अफीम की खेती होती है
दैनिक अवन्तिका उज्जैन। ठंड में पोस्तादाना का हलवा खाने का शोक रखने वालों की जुबान का स्वाद महंगा पड सकता है। पोस्तादाना जिस अफीम से निकलता है उसकी फसल रोगग्रस्त होने की जानकारी सामने आ रही है। अफीम की फसल में काली मस्सी रोग हो रहा है जिससे फसल प्रभावित होने का अंदेशा जताया जा रहा है। इसके साथ ही फसल में अन्य रोग की बात भी कही जा रही है। इस कारण से पोस्तादाना उत्पादन प्रभावित हो सकता है और दाम में बढोतरी हो सकती है।मौसम का असर फसलों पर हो रहा है। इससे फसलें भी बीमार हो रही हैं। अफीम भी इस समय बीमारी की चपेट में आ रही है। देशभर में अफीम के लिए मशहूर मंदसौर जिले के अंचल में अफीम की फसल को लेकर किसान हैरान परेशान भी हैं। काला सोना कही जाने वाली अफीम की फसल में आए रोग ने जिले के अफीम उत्पादक किसानों की चिंता बढ़ा दी है। खास तो यह है कि किसानों को रोग को लेकर सही जानकारी नहीं होने और दवाओं के बारे में सही जानकारी का अभाव होने की स्थिति में किटनाशक एवं पेस्ट्रीसाईड विक्रेताओं पर निर्भर होना पड़ रहा है जो उन्हें महंगी दवाईयां फसलों के लिए दे रहे हैं लेकिन उसके बाद भी फसल का रोग नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। इससे किसान को आर्थिक मार तो सहना ही पड रही है मानसिक रूप से भी परेशान होना पड रहा है।सही जानकारी और पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव में ऐसा हो रहा है। पिछले एक पखवाडे में फसल को अलग-अलग प्रकार की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। किसानों के अनुसार अफीम में काली मस्सी, जड सदन, पत्ते सूखना, ग्रोथ रुकना दूरी अधिक होना जैसी परेशानियां देखी जा रही हैं। किसानों की समस्या और हैरानी परेशानी के कारण से फसल के जानकार भी खेतों में जाकर अफीम की फसल का निरीक्षण कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र लगातार किसानों को जरूरी सलाह भी दे रहा है। ऐसे किसान जो पूरी जानकारी से अवगत नहीं हैं वे परेशान हो रहे हैं। किसानों का कहना है कि इस वक्त फसल को बिमारी से बचाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।बच्चों की तरह फसल का ख्याल रखा जा रहा है। इसकी खास वजह यह है कि अफीम की फसल अन्य अनाज की फसलों से बिल्कुल अलग है और इसके नियम कायदे भी अलग ही रहते हैं । रोग से पहले किसानों ने जानवरों, पक्षियों से फसल की सुरक्षा पर मोटी रकम खर्च कर कई उपाय किए। अब रोग से फसल को बचाने के लिए दवाओं पर राशि खर्च करनी पड़ रही है। क्षेत्र में लगी अफीम की फसल में अभी से काली मस्सी का प्रभाव ज्यादा दिखने लगा है। किसान छिडकाव व अन्य जतन भी कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि फसल स्वस्थ होगी। इसके साथ ही ठंड का असर भी बढ़ रहा है, रात में तापमान कम होने के साथ ही पारा गिरने की आशंका भी रहती है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान कृषि विज्ञान केंद्र आकर अपनी समस्या का निराकरण कर सकता है। गौरतलब है कि मंदसौर जिले में इस साल नियमित व सीपीएस मिलाकर करीब 18 हजार किसानों को पट्टे मिले है। पिछले साल से अफीम खेती में सीपीएस के पट्टे भी जुड़ गए हैं। इससे अफीम खेती करने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ गई है। फसल में आ रही समस्या को लेकर कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जड सडन एक मृदा जनित रोग है। मृदा में ज्यादा नमी के कारण होता है इसके उपाय के तहत किसानों को कवकनाशी दवा हेक्कोनेझोल मिली प्रति लीटर पानी की दर से 12-15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिडकाव करना चाहिए। वहीं (काली मस्सी) डाउनी मिल्ड्यू रोग नियंत्रण हेतु कवकनाशी दवा मेक्झिल रन मॅकोजेब 64त्न मिश्रण का 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 12- 12 दिन के अंतराल पर छिडकाव करने से समस्या का निराकरण हो सकता है। किसान केविके आकर पौधे का टेस्ट व उचित सलाह भी ले सकते हैं।अभी थोक में 1320 रूपए किलो-अफीम से निकलने वाला पोस्तादाना हलवे ही नहीं कई प्रकार की मिठाईयों को बनाने में उपयोग किया जाता है। वर्तमान में यह थोक में 1320 रूपए प्रतिकिलो का भाव बाजार में बताया जा रहा है। फसल रोग ग्रस्त रहने पर अफीम से पोस्तादाना कम निकलेगा और उत्पादन प्रभावित होने की स्थिति में बाजार में कम आने पर इसका भाव बढना तय है। वैसे मंदसौर –नीमच के साथ ही राजस्थान एवं पाकिस्तान के साथ ही अफीम की फसल खाडी के कुछ देशों में भी होती है। पोस्तादाना वहां से भी हमारे यहां आता है।