कड़ाके की सर्दी में खुले में सो रहे लोग बदन पर कपड़े फटे, दिमाग का संतुलन ठीक नहीं, ऐसे में रैन बसेरे में सोने के लिए मांग रहे हैं पहचान पत्र

तीन दोस्त.. ओढ़ने के लिए एक कंबल.. एक दूसरे ओढ़ने के लिए खींच रहे थे।
दैनिक अवंतिका(उज्जैन) कड़ाके की सर्दी के कारण लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव देखा जा रहा है। बाजार दोपहर बाद गुलजार हो रहे हैं। जबकि देर शाम से ही लोग घरों की ओर कूचकर रहे हैं। भीषण ठंड की स्थिति को देखते हुए फुटपाथों पर सोने वालों को रैन बसेरों में शिफ्ट नहीं किया जा रहा है। शरीर पर ठीक से कपड़े भी नहीं है और दिमाग का संतुलन बिगड़ा हुआ है ऐसे में उनके पास पहचान पत्र होना नामुमकिन है। यह उन लोगों की व्यथा है जो कड़ाके की ठंड में खुले में रात बिताने को मजबूर है। दैनिक अवंतिका के संवाददाता ने माधव कॉलेज के सामने बने खुले में फूटपाथ पर सो रहे लोगों से पूछा कि वह खुले में क्यों सो रहे हैं ?
 इस पर उनका जवाब था कि बिना आधार कार्ड के रैन बसेरे में ठहरने नहीं दिया जा रहा है। इस कारण फुटपाथ पर सो रहे हैं। ऐसे आधा दर्जन के लगभग लोग इस कड़ाके की ठंड में सर्द रात फुटपाथ पर गुजरने को मजबूर थे। सभी की एक ही वजह थी कि उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। आधार कार्ड नहीं होने की वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि गुम हो गया है हमें नहीं पता कहां से बनेगा। वहीं के कुछ लोगों ने कहा कि इनके पास पहनने के लिए ठीक से कपड़े नहीं है दिमागी संतुलित बिगड़ा हुआ है ऐसे में इनके पास आधार कार्ड कहां से मिलेगा। इस वजह इन्हें इस कड़ाके की ठंड का सितम झेलना पढ़ रहा है। माधव क्लब के सामने फुटपाथ पर सो रहे शिव शक्ति नगर निवासी गोविंद ने बताया कि वह भंगार का काम करता है और पत्नी की मौत होने के बाद उसकी दिमागी संतुलन बिगड़ गया इसके बाद उसने घर त्याग दिया था तभी से वह फुटपाथ पर ही जीवन गुजार रहा है। रात खुले में फुटपाथ पर गुजरता है उसने बताया कि देवास गेट रैन बसेरे पर वह गया था लेकिन उसके पास आधार कार्ड नहीं था इसलिए उसे एंट्री नहीं दी गई। इस कारण वह फुटपाथ पर सोकर रात गुजर रहा है इसी तरह महाराष्ट्र के भुसावल में रहने वाले गोलू, हेमंत, राजू मराठा से पूछा गया कि वह खुले में फुटपाथ पर क्यों सो रहे हैं? तो उनके पास भी एक ही जवाब था उनका कहना था कि उनके पास पहचान के कोई दस्तावेज नहीं है ना ही आधार कार्ड है। इसलिए उन्हें रैन बसेरे में एंट्री नहीं दी जा रही है। इस कारण तीनों मजदूरी से लौटने के बाद शाम को फुटपाथ पर ही रात गुजारते हैं। तीनों दोस्त के पास ओढ़ने के लिए एक कंबल था। जिसे एक दूसरे ओढ़ने के लिए खींच रहे थे। इधर इस कड़ाके की ठंड में कोई सामाजिक संस्थाओं द्वारा कंबल वितरण भी नहीं किए जा रहे है। फुटपाथ पर सो रहे कई लोगों के पास पर्याप्त औड़ने के लिए कम्बल भी नहीं थे।