पता नहीं चलता है कि किसने कितनी बिजली जलाई

उज्जैन। यूं भले ही बिजली विभाग के अधिकारी दावा करें तक बिजली चोरी रोकी जा रही है और इसके लिए पुराने मीटर बदलकर स्मार्ट मीटर लगाने का सिलसिला जारी है लेकिन शहर के बाहरी हिस्सों में कई कॉलोनियां ऐसी भी है जहां अधिकांश घरों में सामान्य मीटर ही नहीं लगे है और ऐसे में यह पता नहीं चलता है कि किसने कितनी बिजली जलाई है।

इससे तय है कि नियमानुसार बिजली कंपनियां ऐसे उपभोक्ताओं को महज 75 यूनिट तक का ही बिल दे सकती हैं। ऐसे में यह उपभोक्ता कितनी भी बिजली का उपयोग कर रहे हैं कैसे पता चले। इस तरह के उपभोक्ताओं द्वारा बिजली उपयोग अधिक मात्रा में करने की वजह से ही घाटा हो रहा है तो दूसरी ओर खुले आम शहरों की स्लम बस्तियों में खुलेआम सैकड़ों की संख्या में अवैध तार डालकर बिजली का उपयोग खाना बनाने से लेकर पानी गरम करने तक में किया जाता है, लेकिन इन पर बिजली महकमा नकेल नहीं कस रहा है। हाल ही में तीनों बिजली कंपनियों द्वारा नियामक आयोग को दी गई जानकारी में बताया गया है कि m उज्जैन समेत अन्य शहरों में sa 4 लाख 64 हजार बिजली उपभोक्ताओं के घरों पर बिजली मीटर तक नहीं लगाए गए हैं। यह स्थिति तब है जबकि, केंद्र सरकार द्वारा बिजली कंपनियों को बिजली चोरी रोकने और लाइन लॉस को कम करने के लिए करोड़ों रुपए का बजट दिया जा रहा है। इस राशि से स्मार्ट मीटर भी लगाए जा रहे हैं। कृषि उपभोक्ताओं को दी जाने वाली बिजली की गणना ट्रांसफॉर्मर और फीडर से की जाती है। लेकिन बिना मीटर वाले घरेलू बिजली उपभोक्ताओं द्वारा जलाने वाली बिजली को मापने का कोई इंतजाम नहीं है। उधर, अकेले मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने लाइन लॉस कम करने और प्रीपेट स्मार्ट मीटरिंग पर 10 हजार 702 करोड़ रुपए खर्च करेगी। अहम सवाल यह है कि खम्भों से सीधे बिजली के तार डालकर बिजली चोरी करने वालों के खिलाफ बिजली विभाग कभी अभियान नहीं चलाता है, बल्कि बिजली कंपनियां टैरिफ बढ़ाकर ईमानदार उपभोक्ताओं पर भार डाल देती हैं।

Author: Dainik Awantika