शिप्रा नदी की शुद्धिकरण को लेकर उज्जैन में आज संत समाज धरने पर : दत्त अखाड़े के बाहर हुवे एकत्रित
जब भी सिंहस्थ आता है तब योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, परंतु सवाल यही रहता है कि यह करोड़ों रुपए आखिर जाते कहां हैं? क्योंकि धरातल पर तो वैसे कार्य दिखाई नहीं देते। यह करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। ये रुपये आखिर कहां लगे इसका कोई पता नहीं चलता। एक बार फिर कहा जा रहा है कि सिंहस्थ को लेकर नई योजनाएं बनाई जाएंगी, जिसमें शिप्रा शुद्धिकरण भी शामिल है। अब भी क्या गारंटी है कि लगने वाले करोड़ों रुपए की क्या सार्थकता रहेगी ? स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है कि अधिकारी संतों को एक बार फिर झांसे में लेने की कोशिश कर रहे हैं।
क्षिप्रा को मैली होने से बचाने के लिए सांवराखेड़ी में होटल आदि की गंदी साजिश रचने वालों को भी रोकना होगा
उज्जैन के मास्टर प्लान में सिंहस्थ के उपयोग में आने वाली सांवराखेड़ी की जमीन को आवासीय करवाने की साजिश रची जा रही है। सांवराखेड़ी की जमीन और क्षिप्रा के तट पर होटल तथा अन्य निर्माण भी किए जाने की योजना चल रही है। यह बात पहले भी उठी थी कि क्षिप्रा के तट पर तथा सांवराखेड़ी में यदि कॉलोनी कटी या होटल आदि अन्य निर्माण हुए तो उसका मल-मूत्र, गंदा पानी भी शिप्रा नदी में ही मिलेगा। ऐसे में तो शिप्रा का जल और ज्यादा दूषित हो जाएगा। संत भी यही कह रहे हैं कि क्षिप्रा के पानी का शुद्धिकरण होना चाहिए, परंतु भूमाफिया जिस ढंग से सांवराखेड़ी की जमीन को आवासीय करने पर तुले हुए हैं , यदि वह कारगर हो गया तो साधु-संतों और शिप्रा के भक्तों का यह सपना भी अधूरा रह जाएगा कि क्षिप्रा का कभी शुद्धिकरण भी हो सकता है। तब तो क्षिप्रा और अधिक मैली हो जाएगी। यदि क्षिप्रा का शुद्धिकरण करना है तो सबसे पहले भूमाफियाओं और दौलत का ढेर खड़ा करने वाले की गंदी तमन्ना रखने वालों को रोकना होगा।