बालक विद्याधर के नाम से सदलगा में जो सूर्य उदित हुआ था वह विद्यासागर के नाम से चंद्रगिरी में अस्त हो गया
इंदौर। समाधिष्ट आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज कोई सामान्य संत नहीं थे वह गांधी-वादी विचारधारा,(सत्य,अहिंसा ,अपरिग्रह )से समृद्ध श्रमण संस्कृति के महामहिम एवं संतों में जयेष्ठ और श्रेष्ठ एक राष्ट्र हितेषी संत थे, जिन पर हमारी समाज, संस्कृति और राष्ट्र गर्व महसूस करता था।
आचार्य श्री ने 55 वर्ष की तप साधना के दौरान श्रमण संस्कृति के उन्नयन और धर्म , समाज, संस्कृति, जीव दया हथकरघा ,राष्ट्र और राष्ट्रभाषा एवं स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में जो अवदान दिया और समाज एवं शासन को कार्य करने की प्रेरणा और आशीर्वाद दिया वह वर्णनातीत और स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है।
यथा नाम तथा गुण अद्भुत गुरु ज्ञान सागर जी के अद्भुत शिष्य यथा नाम तथा गुण आचार्य श्री विद्यासागर जी अब हमारे बीच नहीं है 10 अक्टूबर 1946 को बालक विद्याधर के नाम से सदलगा में जो सूर्य उदित हुआ था वह आचार्य विद्यासागर जी के नाम से डोंगरगढ़ चंद्रगिरी मैं अस्त हो गया। आज आचार्य श्री शारीरिक रूप से भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका साहित्य और उनके कार्य युगों युगों तक आचार्य श्री को हमारी स्मृति में सदैव जीवंत बनाए रखेंगे।
श्रमण संस्कृति के ऐसे महामहिम साधक समाधिस्थ आचार्य श्री विद्यासागर जी को नमन करते हुए मैं अपनी ओर से हार्दिक विंनयांजलि देता हूं और भारत सरकार से मांग करता हूं कि राष्ट्र हितेषी, राष्ट्रीय संत आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा धर्म, समाज, संस्कृति और राष्ट्र के हित में किए गए कार्यों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उन्हें भारत रत्न अलंकरण दिया जाना चाहिए।
यह मांग मैं पिछले दो वर्षों से कर रहा हूं और मेरी इस मांग का समर्थन शंका समाधान प्रवर्तक मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने भी किया है। इस संबंध में मैं भारत सरकार और प्रधानमंत्री को भी लिख चुका हूं । अब तो हमारे जगत पूज्य मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज भी सरकार से मांग कर रहे हैं की आचार्य श्री को भारत रत्न दिया जाए। समाज की सभी राष्ट्रीय संस्थाओं को एवं सोशल ग्रुप फेडरेशन को भी इस संबंध में प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार से मांग करना चाहिए ऐसा मेरा सुझाव है।
डॉक्टर जैनेंद्र जैन
मंत्री दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद इंदौर