वस्तुत्व महाकाव्य में जैन दर्शन के सभी पक्षों को समाहित किया गया

इंदौर। सुमतिधाम गोधा स्टेट में आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज की कृति वस्तुत्व महाकाव्य पर आयोजित विद्बत संगोष्ठी के दूसरे दिन गोष्ठी के तृतीय सत्र का शुभारंभ पंडित कमल कुमार कमलांकुर ने किया। अध्यक्षता मैसूर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर श्रीमती तेजस्विनी जैन ने की।


जैन दर्शन के मनीषी विद्वान और अखिल भारतीय शास्त्रीय परिषद के अध्यक्ष डॉ श्रेयांश कुमार जैन बढोत ने वस्तुत्व महाकाव्य की महत्ता बताते हुए कहा कि आचार्य श्री ने दर्शन और समयसार का आधार लेकर महाकाव्य की रचना की है जिसमें जैन दर्शन के सभी पक्षों को समाहित किया गया है एवं काव्यों के माध्यम से निमित्त और उपादान का सम्यक चित्रण किया गया है। आचार्य श्री ने इस महाकाव्य में यह सिद्ध किया है कि निमित्त और उपादान की मैत्री से ही वस्तु का सम्यक परीक्षण और कार्य की सिद्धि होती है। ।
डॉ पंकज जैन इंदौर ने कहा कि प्रस्तुत महाकाव्य दर्शन, अध्यात्म और मानवता का महाकाव्य है जो परम सत्य से भी साक्षात्कार कराता है । इस महाकाव्य में आचार्य श्री के केवलज्ञान की झलक भी परिलक्षित होती है।


इंजीनियर पंडित दिनेश जैन भिलाई ने वस्तुत्व महाकाव्य को
कालजयी महाकाव्य निरूपित करते हुए कहा कि पाठकों के द्वारा इसका स्वाध्याय करने पर उन्हें संपूर्ण विषयों की जानकारी उपलब्ध होगी। विद्यार्थियों के लिए भी यह ग्रंथ उपयोगी और उनके ज्ञान में वृद्धि करने में सहायक है।


अध्यक्षता कर रहीं प्रोफेसर तेजस्विनी जैन ने अपना अध्यक्षीय संबोधन और वस्तुत्व महाकाव्य के परिपेक्ष में गुण पर्याय अनुचिंतन विषय पर अपना आलेख संस्कृत में पढा और तृतीय सत्र में पढ़े गए आलेखों की समीक्षा की धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि इस अवसर पर आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने सत्र में प्रस्तुत किए गए विद्वानों के आलेखों पर केंद्रित व्याख्यान देते हुए कहा कि संसार में वस्तुत्व शून्य कोई द्रव्य नहीं हो सकता। चरित्र का आनंद तब तक ही है जब तक वैराग्य जीवित है। गोष्ठी का संचालन डॉ राजेंद्र जैन महावीर सनावद ने किया। इस अवसर पर श्री पवन डोषी, मनीष गोधा, पंडित रमेश चंद बांझल, डॉ जैनेन्द्र जैन प्रदीप बड़जात्या, प्रोफेसर शांतिलाल बड़जात्या, आदि उपस्थित थे‌।