नगर निगम खुद चाहता है मुक्ति इस ग्रांड होटल जैसे सफेद हाथी से
बला टलेगी तो बचेगा बीस लाख रूपया, पर्यटन विकास निगम के हवाले होगी अब सबसे पुरानी यह होटल
ब्रह्मास्त्र उज्जैन
नगर निगम प्रशासन ही नहीं बल्कि बीजेपी का बोर्ड भी ग्रांड होटल जैसे को सफेद हाथी मानता है और यही कारण है कि इस होटल को जल्द से जल्द पर्यटन विकास निगम के हवाले करने के लिए हाय तौबा मचाई जा रही है ताकि निगम के सामने खड़ी यह बला टल सके। यदि पर्यटन विकास निगम ग्रांड होटल को अपने हिस्से में कर लेता है तो नगर निगम के कम से कम बीस लाख रुपए सालाना बचेंगे।
हालांकि सूबे के सीएम डॉ. मोहन यादव की मंशानुसार शहर की इस सबसे पुरानी ग्रांड होटल को पर्यटन विकास निगम अपने नियंत्रण में लेने की तैयारी कर रहा है और बीते कुछ दिनों पहले ही निगम के आला अफसरों ने होटल का जायजा लिया था। बताया जा रहा है कि कुछ ही दिनों में ग्रांड होटल को नगर निगम की तरफ से पर्यटन विकास निगम के हवाले कर दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि कई बार नगर निगम प्रशासन ने ग्रांड होटल को निजी हाथों में सौंपने का प्रयास भी किया था वहीं पर्यटन विकास निगम से भी संपर्क किया जा चुका है लेकिन किसी न किसी कारणवश विशेषकर पर्यटन विकास निगम और नगर निगम प्रशासन के बीच बात जम नहीं सकी। हालांकि अब उज्जैन निवासी और सूबे के सीएम डॉक्टर मोहन यादव की मंशा अनुसार इस होटल को पर्यटन विकास निगम अपने पास रखकर इसका रिनोवेशन कराने के लिए प्रक्रिया पूरी करने में जुटा हुआ है। बताया जा रहा है कि जल्द ही नगर निगम प्रशासन को जिसे जिम्मेदार सफेद हाथी मान रहे हैं उससे छुटकारा मिल जाएगा।
यह है कारण कम कमाई का
दरअसल शहर में मांगलिक परिसरों के साथ ही निजी होटलों के अलावा गार्डन आदि बहुत हो गए हैं वहीं इन्हें पैकेज के साथ भी लोगों को मांगलिक कार्यक्रम करने के लिए दिए जाते हैं। इसके अलावा पचास हजार से कुछ ज्यादा खर्च करने में लोग इसलिए खुश हो जाते है क्योंकि सारी सुविधाएं मुहैया करा दी जाती है और कमरे तक मिल जाते हैं लेकिन ग्रांड होटल में बाहरी परिसर और कमरों का किराया अलग अलग लिया जाता है। फिर टेंट, बर्तन, कॉकरीज, डेकोरेशन, स्टेज आदि पर खर्च अलग करना पड़ता है। इसलिए भले ही पच्चीस हजार किराया कर दिया गया हो लेकिन अन्य खर्च इतना अधिक होता है कि लोग पहले से ही गणित लगाकर यहां तक पहुंचते नहीं है। गौरतलब है कि पर्यटन विकास निगम उज्जैन में पहले से ही होटल अवंतिका, उज्जैनी और शिप्रा को संचालित कर रहा है। महाकाल लोक बनने के बाद इन तीनों होटलों में हमेशा बुकिंग बनी रहती है। बताया गया है कि होटल अधिग्रहण के लिए पर्यटन विकास निगम से प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विभाग को पत्र लिखा गया है।
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया…..
निगम महापौर मुकेश टटवाल का कहना है कि होटल बहुत अच्छी है और सुविधायुक्त भी लेकिन निगम को इस होटल से उतनी आय नहीं हो रही है जिससे इसका मेंटेनेंस किया जा सके। अर्थात यह होटल निगम प्रशासन के लिए आमदनी अठ्ठनी खर्चा रुपैया….जैसा ही हो रहा है। महापौर टटवाल का कहना है कि सालाना बीस लाख रुपए खर्च होते है इसके मेंटेनेंस और कर्मचारियों आदि पर, जबकि आय इससे बहुत कम है। महापौर के अनुसार शादी ब्याह के लिए बाहरी परिसर के लिए पहले पचास हजार रुपए प्रति दिन तय थे लेकिन इसे घटाकर पच्चीस हजार रुपए कर दिया गया। बावजूद इसके शादी ब्याह के लिए लोग यहां आते नहीं है।
पर्यटन विकास निगम के अधिकारियों ने कुछ दिन पहले ग्रांड होटल आकर देखी थी। अधिग्रहण की प्रक्रिया संभवत: शुरू हो गई हैं। हम भी यही चाहते है कि यह होटल पर्यटन विकास निगम संचालित करें। हालांकि इसके संचालन में नगर निगम की भी कुछ हिस्सेदारी तय होना चाहिए।
मुकेश टटवाल, महापौर