जिस तेल को बायो डीजल में उपयोग होना चाहिए उससे नमकीन निर्माण -नमकीन के नाम पर सीधे तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते में बेची जा रही बिमारी

दैनिक अवंतिका (उज्जैन) । जिस खाद्य तेल का उपयोग होने पर बायो डीजल के लिए भेजा जाना चाहिए उससे ही जमकर नमकीन का निर्माण किया जा रहा है। मानक के विरूद्घ निर्मित यह सस्ते दाम का नमकीन शहर में कम और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक खपाया जा रहा है। सीधे तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते में बिमारी बेचने का काम धडल्ले से जारी है।  दो बार उपयोग के बाद खाद्य तेज को बायो डीजल के लिए संग्रहित किया जाने का नियम है जिसका पालन कई उत्पादक नहीं कर रहे हैं।नमकीन के नाम पर सीधे-सीधे शहर से जिले के गांवों में बीमारियों के सप्लाय का काम हो रहा है। इसके कारण से ग्रामीण क्षेत्रों से त्वचा,पेट एवं अन्य बिमारियों के ग्रसितों की संख्या में बराबर इजाफा दर्ज किया जा रहा है। शहर के ही 150 से अधिक सस्ते नमकीन उत्पादक  नमकीन  तैयार कर गांवों में सस्ते दामों पर बेच रहे है। एक ही तेल का बार-बार उपयोग के साथ ही मसालों में सीधे तौर पर डंठल का उपयोग किया जा रहा है। जो कि सस्ते नमकीन के निर्माण में सहायक हैं। यही नहीं चने की दाल के बेसन की बजाय  छिलके वाले चने का ही बेसन और उसमें भी तिवडे की दाल का आटा मिलाकर उपयोग किया जाता है। जिले में दो बार उपयोग के बाद तेल को बायो डीजल के लिए दिये जाने की प्रोसेस भी है पर इसमें कई नमकीन विक्रेता दर्ज ही नहीं हैं।जला तेल लेने के लिए इंदौर की फर्म अनुबंधित-दो बार तेल उपयोग के बाद उसे नमकीन उत्पादक को संग्रहित करके रखना है। जिले में इंदौर की एल जी नामक फर्म इस तेल को एकत्रित कर लेने के लिए अनुबंधित की गई है। संबंधित फर्म के साथ नमकीन वालों का अनुबंध भी है । एलजी फर्म इस जले हुए तेल को लेकर बायो डीजल के प्रोसेस में उपयोग करने के लिए भेजती है।एक ही तेल का कई बार उपयोग-कतिपय नमकीन निर्माता एक ही तेल का बार बार उपयोग कर नमकीन निर्माण कर रहे हैं। खाद्य विभाग का अमला शहर सहित जिलेभर में घूमकर नमकीन, मिठाई , मावे का नमूना ले रहा है जले हुए तेल से बने नमकीन पर नजर अब तक नहीं पहुंच सकी है। अब तक ऐसे नमकीन को लेकर जिले में कोई कार्रवाई सामने नहीं आने से कतिपय ऐसे नमकीन निर्माता तक विभाग नहीं पहुंच सका है। इसके चलते कढाई में भरे तेल को बार- बार गर्म कर कतिपय निर्माता ऐसे तेल से बना नमकीन बनाकर शहर के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में धडल्ले से बेंच रहे हैं।दाम से ही खडे हो रहे सवाल-शहर के बडे नमकीन व्यवसाय की बडी दुकानों पर सामान्य नमकीन 240-260 रूपए प्रतिकिलों के भाव हैं। इसके विपरित ग्रामीण क्षेत्रों में और शहर के कई हिस्सों में कतिपय दुकानों पर 110-140 रूपए किलो नमकीन बेचा जा रहा है। जानकारी लेने पर सामने आ रहा है कि 100 ग्राम तेल और 900 ग्राम बेसन सहित अन्य मसालों में एक किलो सेंव तैयार होती। एक किलो सेंव तैयार करने के लिए 70-80 रुपए का खर्च सामने आ रहा है। जले हुए तेल को बार- बार उपयोग में लिया जाता है। बेसन भी अमानक स्तर का और मसालों में भी अमानकता का समावेश किया जाता है। इसके बाद 100 से 140 रुपए किलो तक सेंव बेची जा रही है। इसमें भी बेचने वाले को कमीशन की स्थिति रहती है। इसके बाद भी कम मूल्य पर बेचने के बाद भी व्यवसायी अपना फायदा भी निकाल रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि घटिया तेल का कितनी बार उपयोग किया जा रहा है। जबकि 240-260 रूपए किलो नमकीन बेचने वाले  की स्थिति यह है कि वे तेल का दो बार से ज्यादा उपयोग नहीं करते हैं साथ ही उनका इंदौर की तय फर्म से अनुबंध है और खपत के मान से वे तेल प्रतिमाह संबंधित फर्म को बायो डीजल के लिए देते हैं।सोयाबीन के तेल के नाम पर 100 से 120 रुपए किलो तक की सेंव अशुद्ध और जले हुए तेल में तैयार करके बनाई जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले कतिपय व्यवसायी कम दामों में पड़ने वाले नमकीन को खरीदकर गांवों में बेच रहे हैं। गांवों में लोग यह समझकर इसे खरीद कर इसका उपयोग कर रहे हैं।रेलवे स्टेशनों पर भी नहीं मानक का पालन-नमकीन एवं अन्य तले खाद्य सामग्री रेलवे स्टेशनों पर भी बेची जा रही है। यहां भी एक ही तेल में बार –बार समोसे कचोरी,पूडी बनाई और बेची जा रही है। खाद्ध तेल का उपयोग मानक के विरूद्ध किया जा रहा है। स्टेशनों के खाद्ध स्टालों पर ट्रेन आने को लेकर ही पूडी सब्जी,समोसे कचोरी  बनाकर रखी जाती है। उसके बाद दुसरी ट्रेन के समय के पूर्व फिर उसी तेल को गर्म किया जाता है। यही क्रम कई बार जारी रहता है और तेल वहीं उपयोग किया जाता है।छोटे मोटे व्यवसायी भी कर रहे लापरवाही-शहर में ठेलों पर समोसे कचौरी, चाट और अन्य वस्तुएं बेचने वाले और छोटे मोटे रेस्टोरेंट स्वल्पहार गृहों पर भी यही स्थिति देखी जा सकती है। इनमें से कई व्यवसायी ऐसे हैं जो खाद्य वस्तुओं को तलने में तेल का उपयोग मानकों के अनुसार नहीं कर रहे हैं। नियमों के अनुसार कढाई में एक बार डाले गए तेल का उपयोग दो बार किया जा सकता है। लेकिन, अधिकांश व्यवसायी तेल का खर्चा बचाने के चक्कर में एक ही तेल का उपयोग कई बार कर रहे हैं। होटल, रेस्टोरेंट और ठेलों पर उपयोग के बाद जो जला हुआ तेल बचता है, उसका एकत्रिकरण जिले में नहीं हो रहा है। नियमानुसार दो बार के उपयोग के बाद  इस तेल को बायो डीजल बनाने में दिया जाता है।-नमकीन निर्माताओं के जले हुए तेल को लेने के लिए इंदौर की फर्म को अधिकृत किया गया है। बडे उत्पादकों के साथ फर्म का अनुबंध है वे जला हुआ तेल फर्म को ही संग्रहित कर देते हैं। ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है। इसे लेकर छोटे उत्पादकों को भी दायरे में लेकर फर्म से अनुबंध करवाया जाएगा। बसंतदत्त शर्मा,वरिष्ठ निरीक्षक खाद्ध सुरक्षा विभाग,उज्जैन