खुसूर-फुसूर मंदिर में निर्माण की निविदाओं पर उठ रहे सवाल
दैनिक अवंतिका(उज्जैन) हम सब के आराध्य के मंदिर में पिछले कई सालों से विकास कार्यों की झडी लगी हुई है। इन विकास कार्यों से आगंतुक श्रद्धालुओं को लाभांवित करना और सहजता से दर्शन,धर्म आध्यात्म की अनुभूति का विस्तारण ही मुख्य है। ये सही है कि मंदिर के इन निर्माणों को मजबूती से किया जाना है। उसमें पूरा ध्यान रखा जाना है। इसका आशय ये कदापि नहीं है कि एक रूपए की जगह मनमानी दर पर निर्माण के काम करवाए जाएं। या चार गुना तक दर की निविदा को हरी झंडी दे दी जाए। बाजार की दर से ही उसे स्वीकृति दी जाए तो भी कोई समस्या नहीं है। वो भी एक अर्द्घ शासकीय एजेंसी के माध्यम से काम में । अगर इससे दुगनी और तीन गुनी नहीं चार गुनी दर पर निर्माण की स्वीकृति दी गई है तो शंका का दायरा बनना तय है। मंदिर से प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के जाने के बाद जमकर खुसूर-फुसूर सुनाई दे रही है। इसमें ये बात सामने आ रही है कि जब से ये आए थे तब से ही मंदिर में निर्माण कार्यों की लागत बढती ही चली गई। कुछ निविदाओं में तो यह बाजार की अधिकतम दर 1500 रूपए प्रति वर्ग फीट से चार गूना हो गई। निविदा को पास करने वाला और काम को देखने वाला भी इनका ही अर्द्ध शासकीय विभाग रहा है। निविदा जारी भी वहीं से की गई और उसके काम की मानिटरिंग भी यहीं के यंत्री कर रहे हैं। अब निर्माण की दर कैसे,क्यों, किसलिए बढा कर ठेका दिया गया यह तो जांच का विषय है लेकिन बाजार से 4 गूना अधिक दर के इन कामों पर सवाल तो बन रहा है। खुसूर –फुसूर है कि मंदिर में कम लागत पर उच्च कोटि के निर्माण के कार्य होने चाहिए थे उसके विपरित अर्द्ध शासकीय एजेंसी ने ही मंदिर के धन को बर्बाद करने में अपना खेल दिखा दिया ।