शांति और सुकून की तलाश मे सनातन की ओर विदेशियो को रास आया ध्यान

 

उज्जैन। भौतिक संपन्नता व समृद्धि हमे क्षणिक सुख व आराम तो दे देती है पर इनर पीस या आंतरिक शांति नही दे पाती जो एक मनुष्य के लिए नितांत आवश्यक है। विदेशो मे ऐशोआराम व भौतिक सुख तो बहुत है पर आत्मशांति नही है। शांति व सुकून की तलाश मे कई विदेशी लोग सनातन धर्म की ओर रूख कर रहे हैं। बाबा महाकाल की नगरी एक सिद्ध क्षेत्र है और यहां ध्यान लगाने पर एक अलग तरह के आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है इसी बात को ध्यान मे रखते हुए महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिप्रातट स्थित सिद्धाश्रम मे गुरू नारदानंद के कुछ विदेशी शिष्य अपना व्यापार व काम छोडकर ध्यान लगाने हजारो किलोमीटर से चलकर शहर मे आए हुए हैं। नारदानंदजी ने बताया कि उनके आश्रम यूरोप व लैटिन अमेरिकी देशों मे हैं जहां कई विदेशी सनातन धर्म अपनाकर ध्यान सीख रहे हैं।वर्तमान मे इटली, बेल्जियम, ब्राजील, फिजी, वेनेजुएला से कुछ विदेशी शिष्य आए हुए हैं। ये लोग भौतिक वैभव की ऊंचाइयों तक पहुंचे पर शांति न मिल पाने पर ध्यान सीखने का मन बनाकर सनातन धर्म की ओर रूख करने पर बाध्य हुए।
ग्राफिक डिजाइनर बनी मोक्षा
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इटली निवासी ग्राफिक डिजाइनर का जीवन ऐशोआराम से गुजर रहा था पर इनर पीस नही था। एक दिन उनकी एक मित्र ने भारतीय ध्यान विधि के लाभ बताए और वे मित्र की सहायता से नारदानंदजी से मिली। मेडिटेशन सीखने पर उनके जीवन मे आमूलचूल परिवर्तन आया और उनका डिजाइनिंग का व्यवसाय भी चमक उठा। उन्होने सनातन धर्म अपना लिया और उन्हे नया नाम व जीवन मिला मोक्षा के रूप मे। अब मोक्षा प्रतिदिन एक घंटा सुबह व एक घंटा शाम को ध्यान लगाती हैं। उन्हे भारत व यहां की प्राचीनता बहुत पसंद है।
ध्यान का प्रभाव हजारों मील तक
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दूरी या फासला ध्यान के प्रभाव के लिए अवरोध नही है ये कहना है बेल्जियम की रहने वाली फेबिएना का। उन्होने ध्यान की आनलाइन क्लास अटेण्ड की और शांति प्राप्त की फिर वे ध्यान केन्द्र से जुड गई और वर्तमान मे सिद्धाश्रम के बैल्जियम सेंटर की इंचार्ज हैं। उन्होने बताया कि वे अपने गुरू से नियमित ध्यान क्रिया सीखती रहीं और अनुभव किया कि पूरा स्ट्रेस खत्म हो जाता है यदि ध्यान किया जाए। फैबिएना ने स्वयं शक्तिपात के आंतरिक आनंद की अनुभूति की है । उनके अनुसार शक्तिपात के आनंद को शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
संतुलित मस्तिष्क हेतु ध्यान जरूरी
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भागदौड की थकाऊ दिनचर्या मे जीवन नीरस व उब भरा हो चुका है। विदेशो मे आदमी प्रगति के लिए दिन रात दौडता रहता है पर उसको सुकून नही मिलता । सुकून की तलाश मे हर वर्ष हजारों विदेशी भारत आते हैं और किसी निष्णात व योग्य आध्यात्मिक गुरू को खोजते रहते हैं।इसी खोज मे ब्राजील के युवक का संपर्क नारदानंदजी से हुआ और उन्होने बहुत जल्दी ध्यान के द्वारा उन्हे प्लेजर दिलवा दिया ब्राजील के इस युवक ने सनातन अपनाकर नाम प्राप्त किया प्राणानंद। आज प्राणानंद बहुत प्रसन्न है और उनका कहना है कि ध्यान के द्वारा आप स्वयं का साक्षात्कार कर पाते हैं तभी आपको अपनी सही पहचान हो पाती है जिसे रियल आइडेंटी कहा जाता है।ब्राजील के ही फेलिप्पबिनडो ने भी ध्यान से आत्मविश्वास प्राप्त किया जब वे जीवन से निराश हो चुके थे। वे भी उज्जैन आकर खुश हैं और यहां की सकारात्मक तरंगो से अभिभूत हैं।
डिप्रेशन दूर करने का अचूक अस्त्र ध्यान
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सिद्धाश्रम के उज्जैन इंचार्ज स्वामी प्रणवानंद का कहना है कि वर्तमान समय मे ज्यादातर लोग डिप्रेशन व एंगजायटी के शिकार चल रहे हैं जिससे कई बार उदासीनता के चलते युवा आत्महत्या तक कर लेते हैं जो बडा ही दुखद है। युवा यदि नियमितरूप से मेडिटेशन करें तो वे कभी भी डिप्रेशन के शिकार नहीं होगें और इस प्राचीन सनातन ध्यान पद्धति से सदैव प्रगति करते रहेंगे। प्रणवानंदजी के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य अच्छा तो स्फूर्तिवान व तरोताजा रहकर व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ देता है। आज पूरे देश मे ध्यान का प्रचार प्रसार परम आवश्यक है। इसके कई सत्र हम सिद्धाश्रम मे भी चलाते रहते हैं।
-पं राहुल शुक्ल