कलेक्टर महोदय, जरा इधर भी नजरें इनायत कीजिए…! निजी दुकानों से शैक्षणिक सामग्री खरीदने के लिए रहता है अभिभावकों पर दबाव, कतिपय निजी स्कूल करते हैं कमीशनखोरी

 

ब्रह्मास्त्र उज्जैन

परीक्षाओं का सिलसिला जारी है वहीं शहर के छोटे बड़े और नामी गिरामी निजी स्कूलों द्वारा प्रवेश प्रक्रिया को भी शुरू कर दिया गया है। लेकिन बीते वर्षों का इतिहास उठाकर देखा जाए तो कतिपय निजी स्कूल प्रबंधन न केवल एक ही दुकान से शिक्षण व यूनिफॉर्म खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाते है वहीं इन कतिपय स्कूलों द्वारा ऐसा कर कमीशनखोरी भी की जाती है।
हालांकि ऐसे मामलों को रोकने के लिए प्रशासन निर्देश भी जारी करता है कि कोई निजी स्कूल एक ही दुकान से शैक्षणिक सामग्री या स्कूली यूनिफॉर्म एक ही दुकान से खरीदने के लिए दबाव न बनाए लेकिन प्रशासन की इस तरह की चेतावनी का असर नहीं होता है और बापड़े अभिभावक मजबूरी में ही सही उसी दुकान से स्कूल यूनिफॉर्म और शिक्षण सामग्री खरीदते हैं जिस दुकान को स्कूल प्रबंधन द्वारा बताया जाता है। लिहाजा कलेक्टर महोदय को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए ताकि कतिपय निजी स्कूल प्रबंधन कमीशनखोरी न कर सकें।

खुलेआम लगाते हैं बोर्ड
भले ही प्रशासन द्वारा चेतावनी दी जाती रही हो या फिर एक बार फिर से इस नए शैक्षणिक सत्र में चेतावनी दी जाएगी लेकिन बावजूद इसके कतिपय स्कूल प्रबंधन द्वारा कमीशन देने वाली दुकानों का पर्चा तक अभिभावकों को दे दिया जाता है। वहीं बाजारों में ऐसी कई दुकानें है, जहां खुलेआम लिखकर बोर्ड लगा दिए जाते हैं कि यहां….फलाने.. स्कूल…का कोर्स या यूनिफॉर्म मिलती है।

लूट सके तो लूट
निजी स्कूलों के शुल्क की यदि बात करें तो शहर में ऐसे ऐसे कई नामी स्कूल है जहां मनमर्जी से फीस ली जाती है और फीस के रूप में न जाने कितने शुल्क वसूले जाते हैं। कुल मिलाकर अभिभावकों को लूट सके तो लूट वाली बात चरितार्थ करने से गुरेज नहीं किया जाता है।

थक-हार कर वहीं पहुंचना होता है जिसे बताते हैं
भले ही प्रशासन स्कूलों के लिए चेतावनी जारी करें औ यह कहे कि यदि कोई शिकायत मिलती है तो संबंधित स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई होगी लेकिन इस चेतावनी का असर न स्कूल प्रबंधन पर होता है और न ही अभिभावकों पर। दरअसल अभिभावकों की यह मजबूरी होती है कि उसे अपने बच्चे को स्कूल में पढ़ाना होता है क्योंकि अभिभावक की सोच यही रहती है कि यदि जिस निजी स्कूल में उसका बच्चा पढ़ने के लिए जा रहा है या फिर एडमिशन दिलाई जा रही है वह प्रसिद्ध स्कूल है और उसके बच्चें का भविष्य संवर जाएगा। यही प्रमुख कारण रहता है कि भले ही बाजार की अन्य दुकानों पर शिक्षण सामग्री या यूनिफॉर्म तलाश ली जाए लेकिन थक-हार कर उसी दुकान पर पहुंचना पड़ता है जिसे कतिपय स्कूल प्रबंधन द्वारा बताया जाता है क्योंकि बाजार की अन्य दुकानों पर या तो पूरा कोर्स उपलब्ध नहीं रहता है या फिर यूनिफॉर्म का रंग मिलता नहीं है और फिर ऐसे में अभिभावकों को संबंधित बताई हुई दुकानों पर ही जाकर अपने बच्चे के लिए खरीदी करना पड़ती है।