खुसूर-फुसूर शीत संग्राम…
दैनिक अवंतिका उज्जैन
पानी को लेकर समस्या निदान के विपरित एक नई कहानी शुरू हो गई है। इसे शीत संग्राम के रूप में देखा जा रहा है। पिछले कुछ दिनों तक यह शीत संग्राम कागजों तक ही सिमटा हुआ था अब प्रशासनिक अधिकारियों से हारकर जनप्रतिनिधियों ने जनता के सामने मिडिया के माध्यम से आवाज बुलंद करने से मामला बाहर आ गया है। अधिकारियों ने जब सत्ता वाले जनप्रतिनिधियों को भी दरकिनार कर निर्णय ले लिया तो दर्द की यह दास्तां बाहर तक आ गई । जनता के साथ जब ऐसा होता है तो एक भी जन प्रतिनिधि मरहम लगाने नहीं आता है। यहां तो और मिडिया रूपी जनता ने जनप्रतिनिधियों की दर्द की दास्तां सूनी ही नहीं उस पर मरहम भी लगाया है। आम जनता नाली,पानी,प्रकाश व्यवस्था के लिए कई शिकायतें कर रही है। तमाम टेक्स देने के बाद भी आम जनता की बात सूनने वाला कोई नहीं है। उसे आश्वासन मिलते हैं। जिन क्षेत्रों से टेक्स के नाम पर कुछ नहीं मिलता है वहां वोट के लिए जनप्रतिनिधि सब कुछ करने को तैयार रहते हैं। ऐसा ही कुछ पानी के संग्राम में हो गया है। अधिकारियों ने दिन का गेप भी नहीं किया है और पानी भी प्रतिदिन दे रहे हैं। शहर को दो भाग में बांट कर पानी दिया जा रहा है। पिछले कई सालों से मार्च से ही पानी की समस्या सामने रही है। हर बार सिर्फ बातें की गई कई वर्षों से सत्ता में रहने वाले इसका निदान नहीं कर सके। जरा सी बात पर अधिकारियों को दोष देने से पीछे नहीं हटे । खुसूर- फुसूर है कि अब जनता उज्जैन में पानी को लेकर हिसाब मांगेगी। आखिर सालों से चली आ रही इस परेशानी के लिए पिछले कई सालों से स्थानीय सत्ता संभालने वालों ने इस समस्या के निदान के लिए क्या योजना बनाई है और अगर इतने सालों में योजना नहीं बनी तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है। इसका जवाब जनता जानना चाहती है।