कॉलोनी की जमीन में धांधली राजस्व विभाग का रेकार्ड गायब
खाचरौद। यह तो सर्व विदित है, आदिवासी भील समाज कि भुमि को कोई खरीदता है तो जिला कलेक्टर से अनुमति ली जाना आवश्यक है, जिला कलेक्टर भी तभी जमीन बेचे जाने कि अनुमति देता है जब उस जमीन के बदले में आदिवासी को दुसरी जमीन खरीदना बताना पड़ता है तब कही जाकर अनुमति मिल पाती है। ऐसा ही एक गंभीर मामला प्रकाश में आया है रतलाम-नागदा-बड़नगर बायपास रोड़ पर कृषि भुमि सर्वे नं. 450/1 रकबा 3.160 है सर्वे नं. 450/2 रकबा 2.200 हैक्टर, सर्वे नं. 453 रकबा 1.960 हैक्. ,सर्वे नं. 449 रकबा 0.120 हैक्., सर्वे नं. 448 रकबा 0.990 हैैक्., सर्वे नं. 18 रकबा 1.220 हैक्. कुल किता 06 रकबा 9.650 हैक्टर जिनके बंदोबस्त पूर्व सर्वे नम्बर क्रमश: 607, 608, 611, 613, 614, 615, 617, 618, 612, 616, 619, 620, 182 होकर उक्त भुमि पक्षकार के पूर्वज तेजसिंग पिता लक्ष्मणसिंग जाति भील निवासी खाचरौद से दर्ज आ रही थी। भेरूलाल पिता पूनमचन्द के दादा परदादा के नाम भुमि थी उक्त भुमि को कलेक्टर महोदय के आदेश से कभी परिवर्तीत नही करवाया है। लेकिन यह जमीन कैसे सत्यनारायण पिता बाबुलाल ,राधेश्याम पिता बाबुलाल राठौर, स्वरूपनारायण पिता मदनमोहन शाह, बगदीराम पिता हरिराम मण्डावलिया जाति धाकड़ निवासी खाचरौद द्वारा स्वंय का नाम दर्ज करवाते हुवे वर्तमान में उक्त भुमि पर अवैध रूप से कॉलोनी का निर्माण के उद्वेश्य से प्लाट काटने की तैयारी कर रहा है। भेरूलाल पिता पूनमचन्द ने खाचरौद एसडीएम की अदालत में आवेदन प्रस्तुत किया है यह आवेदन विचाराधीन चल रहा है आपत्तिकर्ता के एडवोकेट संदीप चैधरी विधिवत वकिल के रूप से पैरवी कर रहे है। यह मामला बहुत ही रोचक बनता दिखाई दे रहा है। म.प्र. शासन ने यह नियम कब से लागू किया गया था कि आदिवासी कि भुमि आदिवासी तो खरीद सकता है लेकिन र्स्वण नही खरीद सकता है इसके लिये कलेक्टर से अनुमति ली जाना आवश्यक है मामला इसलिये रोचक है कि तेजसिंग पिता लक्ष्मण जाति भील के नाम यह भुमि कब दुसरो के नाम परिर्वतन होकर खसरा,बी.वन मे दर्ज हुई तथा कौन तहसीलदार उस समय यहॉ पदस्थ रहे, उक्त आदेश से ही खुल्लासा हो सकता है तहसील रेकार्ड में 1935 से लगाकर 1951 तक के खसरा, बी.वन का रेकार्ड गायब है यह रेकार्ड ग्वालियर में 1937 से लगाकर 1965 तक रेकार्ड उपलब्ध नही है जिसकी प्रमाणित प्रतिलिपि फरीयादी के पास उपलब्ध है। ऐसा बताया जा रहा है तब तो जमीन परिर्वतन करवाने वालो के लिये भी यह चुनौती बना रहेगा मामला गंभीर है राजस्व विभाग के लिये यह उलझन भरा है वकिल द्वारा आवेदन लगाये जाने के बाद अभी तक उक्त आवेदन को अधर में लटकाये हुवे है प्रकरण दर्ज कर प्रकरण क्रमांक नही दिये गये है। अनुविभागीय राजस्व कि अदालत में भी कब तक आवेदन को विचाराधीन रखेगे ?