कांग्रेस में अच्छे प्रत्याशियों का पड़ गया अकाल
दिग्विजय, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया और विवेक तन्खा जैसे बड़े नेता भी हार गए थे चुनाव, सिंधिया भी कांग्रेस में थे और गुना- शिवपुरी सीट से हुए थे पराजित
भोपाल। आखिर कांग्रेस को अच्छे प्रत्याशियों का टोटा क्यों पड़ रहा है? मध्य प्रदेश में युवा चेहरे उतारने की बात कर अपनी लाज बचाने की स्थिति क्यों आ रही है? इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस के जितने भी महारथी हैं, उनमें से कोई भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहता। सभी , इधर-उधर बगले झांक रहे हैं। दरअसल, ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे की वजह है पिछला अनुभव।
गत लोकसभा चुनाव में यानि वर्ष 2019 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रहते हुए भी दिग्गज नेता जीत के प्रति बेहद आशान्वित होकर लोकसभा चुनाव में उतरे , परंतु अपनी और पार्टी दोनों की ही नाक कटवा दी। ऐसी आठ लाेकसभा सीटें रही जहां दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अरूण यादव और विवेक तन्खा जैसे बड़े नेता चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन इन्हें भाजपा प्रत्याशियों से बड़े अंतर से हार मिली। उस दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में थे और गुना- शिवपुरी सीट से हार गए थे।
ऐसी सीटों में रतलाम, मुरैना, ग्वालियर, खंडवा, सीधी, भोपाल और जबलपुर शामिल हैं। इन सभी सीटों पर दिग्गज नेता उतारे गए थे। कांग्रेस इस बार नई पीढ़ी और नए नेतृत्व के साथ लोकसभा चुनाव के मैदान में उतर रही है इसलिए प्रदेश की प्रत्येक सीट पर लंबा विचार मंथन कर प्रत्याशी चयन के लिए जोड़ गणित
लगा रही है।
आलाकमान की इच्छा सभी बड़े नेता लड़े चुनाव
केंद्रीय नेतृत्व तो चाहता था कि सभी दिग्गज लोकसभा चुनाव लड़ें, लेकिन कोई तैयार नहीं हो रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस अब तक 18 सीट पर प्रत्याशी चयन नहीं कर पाई है। भाजपा ने 29 लोकसभा सीट पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, लेकिन कांग्रेस केवल 10 सीट पर ही प्रत्याशी घोषित कर पाई है। बड़े अंतर से हारने वाली इन सीटों पर इस बार भी की तलाश की जा रही है।