गर्मी के मौसम का असर…. कम होने लगा गंभीर डेम का पानी….चोरी करने वालों पर भी नजर

दैनिक अवंतिका उज्जैन
उज्जैन। गर्मी का मौसम भले ही अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ हो लेकिन जिस तरह से मौसम अभी है उसका असर शहरवासियों की प्यास बुझाने वाले गंभीर डेम पर होने लगा है। डेम के नियंत्रण कक्ष से प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते कुछ दिनों से यह देखने में आ रहा है कि डेम का पानी हर दिन कम होता जा रहा है। इसके साथ ही गंभीर डेम परिक्षेत्र से पानी चोरी करने वालों पर भी नजर रखी जा रही है। डेम नियंत्रण कक्ष से प्राप्त जानकारी के अनुसार गर्मी के मौसम में पानी का वाष्पीकरण होता है अर्थात पानी भाप बनकर उड़ रहा है। हालांकि डेम के नियंत्रण कक्ष के प्रभारी का कहना है कि यह चिंता की बात नहीं है क्योंकि जून माह तक का पानी पर्याप्त आंका जा रहा है बावजूद इसके जिस तरह से गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ ही गंभीर का पानी भाप बनकर उड़ रहा है वह निश्चित ही चिंतित करने वाली बात भी हो सकती है। इधर पीएचई विभाग की टीम द्वारा  गंभीर से पानी चोरी करने वालों पर भी नजर रख रही है। वैसे अभी खेतों में सिंचाई का काम नहीं हो रहा है इसलिए जिम्मेदार विभाग के अफसर राहत महसूस कर रहे है लेकिन इसके बाद भी यदा-कदा कतिपय किसानों द्वारा पानी की मोटर लगाकर सीधे पानी खींचने से भी गुरेज नहीं कर रहे है।करीब 6 एमसीएफटी पानी घट रहा
बताया जा रहा है कि मार्च माह के अंतिम  दिनों में ही गंभीर जलाशय से हाल फिलहाल  6   एमसीएफटी पानी घट रहा है। यदि तेज गर्मी पड़ती है तो यह आंकड़ा ओर भी बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा ही रहता तो हो सकता है कि मई माह तक ही जलाशय का पानी इतना ही रहेगा कि हो सकता है कि शहरवासियों को एक दिन छोड़कर पानी देने का फैसला भी लेना पड़ सकता है। गौरतलब है कि  गंभीर डेम से ही उज्जैन में पेयजल सप्लाई होता है । गंभीर डेम की क्षमता 2250 एमसीएफटी है। शहर की प्यास बुझाने वाले गंभीर बांध का निर्माण वर्ष 1992 में हुआ था।वाष्पीकरण क्यों होता है वाष्पीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पानी गैस या वाष्प में परिवर्तित होता है। वाष्पीकरण प्राथमिक मार्ग है कि पानी तरल अवस्था से वापस वायु चक्र में वायुमंडलीय जल वाष्प के रूप में चला जाता है। अध्ययनों से पता चला है कि महासागरों, समुद्रों, झीलों और नदियों को वाष्पीकरण के माध्यम से हमारे वातावरण में लगभग 90 प्रतिशत नमी प्रदान की जाती है, शेष 10 प्रतिशत पौधों के वाष्पोत्सर्जन द्वारा योगदान दिया जाता है।