मंत्री का पद होते हुए भी संगठन का काम भी कर रहे कैलाश विजयवर्गीय
कमलनाथ और नकुलनाथ को हर तरह से हराने की तगड़ी प्लानिंग
इंदौर। इस बार लोकसभा में भाजपा और संघ का फोकस छिंदवाड़ा को लेकर ज्यादा दिखाई दे रहा है। यह एक ही ऐसा जिला है जहा पर भाजपा काफी वर्षों से हारती आ रही है। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय को बड़ी जिम्मेदारी सोपी गई है। पिछले 2 दिन से विजयवर्गीय छिंदवाड़ा में ही रहकर कमलनाथ के गढ़ को भेदने की तैयारी में लगे हुए है।
छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र भाजपा के लिए सबसे कमजोर माना जाता रहा है। पार्टी इस सीट को केवल 1997 में उपचुनाव में जीत सकी थी, जब सुंदरलाल पटवा उम्मीदवार बने थे। अन्यथा यह कमलनाथ का मजबूत दुर्ग है। भाजपा ने इस बार इस दुर्ग को भेदने की कमान अपने सबसे विश्वस्त और माहिर रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय को दी है।
कैलाश विजयवर्गीय ने हरियाणा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भाजपा का कमल खिला कर दिखाया है। उन्होंने छिंदवाड़ा में इस तरह रणनीति बनाई है कि भाजपा के मैदानी कार्यकर्ताओं को आगे रखा जाए दूसरी ओर कमलनाथ के ठोस और मैदानी कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाया जाए। इस काम में उनकी मदद नरोत्तम मिश्रा भी कर रहे हैं।
दरअसल, छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र ऐसा है, जिसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार चुनाव जीतते रहे हैं और अभी उनके बेटे नकुल नाथ सांसद हैं। कांग्रेस ने उन्हें फिर चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ को भेदने के लिए सेंध लगानी शुरू कर दी है। चौरई से पूर्व विधायक गंभीर सिंह सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारियों को भाजपा की सदस्यता दिलाई जा चुकी है।
कैलाश विजयवर्गीय और पूर्व मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा के नेतृत्व वाली प्रदेश भाजपा की न्यू ज्वाइनिंग
टोली विधानसभावार कमजोर कड़ियों पर काम कर रही है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने देश की 156 ऐसी संसदीय सीटों को चिह्नित किया था, जहां पार्टी लंबे समय से चुनाव नहीं जीत पाई है। इसमें मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट भी शामिल है। 2019 के चुनाव में प्रदेश की 29 में से 28 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं, लेकिन छिंदवाड़ा कमल नाथ का अभेद्य किला बना रहा। उनके बेटे नकुल नाथ ने यहां से जीत दर्ज की। हालांकि, भाजपा के आदिवासी चेहरा नत्थन शाह ने हार के अंतर को 37 हजार 536 पर ला दिया था।
इससे भाजपा को आधार मिला और उसने दो-तीन वर्ष जमकर मैदानी स्तर पर काम किया। असर यह रहा कि कमल नाथ छिंदवाड़ा में ही बंधकर रह गए। यही भाजपा की रणनीति भी थी। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी सातों विस सीटें कांग्रेस ने जीतीं।
छिंदवाड़ा ही प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला है, जहां महापौर से जिला पंचायत अध्यक्ष तक कांग्रेस का है। भाजपा ने कार्य योजना बनाकर उन नेताओं पर काम किया, जो अलग- अलग कारणों से कमजोर कड़ियां थीं। कमल नाथ और नकुल नाथ के भरोसेमंद माने जाने वाले कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।
आपसी गुटबाजी और कमल नाथ को लेकर जो स्थिति है, उसके चलते अब भी सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा की सदस्यता लेने के लिए तैयार हैं। दरअसल, कमलनाथ के समर्थकों को लगने लगा है कि राहुल गांधी के चलते कमलनाथ और नकुलनाथ का कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में समय रहते महत्वाकांक्षी कार्यकर्ता और नेता भाजपा में प्रवेश करना चाहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा दल बदल छिंदवाड़ा जिले में ही हो रहा है।