कान्ह का गंदा पानी शिप्रा में मिलना बदस्तुर जारी, बार-बार टूट रहा कच्चा बांध
स्थाई और पक्के स्टापडेम का प्रस्ताव अफसर नहीं करा सके शासन से मंजूर
शिप्रा के पानी का निगम नहीं कर पा रहा उपयोग, बीजेपी बोर्ड चाहता है पेयजल के लिए उपयोग हो शिप्रा का पानी
ब्रह्मास्त्र उज्जैन
त्रिवेणी पर कान्ह नदी का गंदा पानी शिप्रा में मिलने का सिलसिला जारी है लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अभी तक स्थाई और पक्का स्टापडेम का प्रस्ताव शासन स्तर पर मंजूर नहीं करा सके है। नगर निगम प्रशासन यह चाहता है कि यदि पक्का स्टापडेम बन जाता है तो शिप्रा का पानी पेयजल के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा।
हालांकि निगम महापौर और बोर्ड ने एक बार फिर शासन से पक्का स्टापडेम बनाने के लिए निवेदन किया है। लेकिन मौजूदा स्थिति लोकसभा चुनाव की है इसलिए अब जो कुछ भी होगा चुनाव के बाद ही होने की संभावना जताई जा रही है। बताया गया है कि हाल ही में एक बार फिर मिट्टी का कच्चा बांध टूट गया था और कान्ह का गंदा पानी शिप्रा में मिल रहा है। शिप्रा नदी को शुद्ध करने और कान्ह नदी के साथ ही गंदे नालों का पानी रोकने के लिए करोड़ो रूपए अभी तक खर्च हो चुके हैं लेकिन बावजूद इसके शिप्रा का पानी शुद्ध होने का नाम नहीं ले रहा है। बताया गया है कि त्रिवेणी पर एक बार फिर अभी मिट्टी का कच्चा बांध टूट गया है और इस कारण कान्ह नदी का गंदा पानी शिप्रा में मिलना बदस्तुर जारी है। गौरतलब है कि शिप्रा नदी में कान्ह का प्रदूषित पानी मिलने से रोकने के लिए त्रिवेणी घाट के पास मिट्टी का कच्चा बांध बनाया गया है लेकिन यह बार-बार टूट जाता है और इस कारण कान्ह का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिलता है। नगर निगम महापौर मुकेश टटवाल का यह कहना है कि हम पेयजल के मामले में सिर्फ गंभीर बांध पर ही आश्रित नहीं रहना चाहते हैं और शिप्रा का भी पानी पीने योग्य बनाकर उपयोग करना चाहते हैं। इसकी योजना भी बनी है लेकिन जब तक कच्चे बांध को पक्का और स्थाई नहीं बनाया जाता तब तक कच्चे बांध टूटने की घटना होती रहेगी। महापौर का यह भी कहना है कि हमने शासन से फिर निवेदन किया है कि स्थाई और पक्का स्टापडेम बना दिया जाए। मालूम हो कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के नालों का सीवेज युक्त गंदा पानी उज्जैन आकर कान्ह नदी के रूप में शिप्रा में आकर मिलता है। इससे शिप्रा का स्वच्छ जल भी दूषित हो जाता है।
दम तोड़ रही हैं शिप्रा को संवारने वाली योजनाएं
10 साल से शिप्रा को संवारने वाली योजनाएं दम तोड़ रही हैं। अफसर कागजों में पौधरोपण कर रहे हैं। उद्योगों से निकलने वाला दूषित पानी रोक रहे हैं। नालों के पानी को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर नदियों में छोड़ रहे हैं। उनके कागजी झूठे कारनामों की पोल महालेखाकार (सीएजी) ने खोल दी है। शिप्रा में घटते पानी और गंदे होने की जांच सीएजी ने की। शिप्रा से जुड़े 14 विभागों के 2016-17 से लेकर 2020-21 में किए काम की पड़ताल की तो विभागों की बड़ी लापरवाही सामने आई। शिप्रा में मिल रहे 28 नालों में 11 की ही टैपिंग की गई है वहीं शिप्रा और उसकी सहायक नदियों के किनारे सांवेर, महिदपुर, आलोट में नालियां नहीं बनीं हैं। निगमों ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगाए हैं।
इनका कहना है
कच्चे बांध को पक्का और स्थाई बनाने की बहुत जरूरत है ताकि कान्ह का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिलने से रोका जा सके। शासन स्तर पर फिर से हमने निवेदन किया है। शिप्रा का स्वच्छ जल पेयजल के लिए हम उपयोग करना चाहते हैं।
मुकेश टटवाल, महापौर