होली की पारंपरिक मिठाई… वाह क्या बात है…!
रसोईघरों से उठी सुंगध…. मेहमानों का मुंह मीठा होगा
ब्रह्मास्त्र उज्जैन
होली या रंगपंचमी जैसा त्योहार हो और घरों में आने वाले मेहमानों की मुंह मीठा न कराया जाए। ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता है, क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति में मेहमानों को भगवान का दर्जा दिया गया है और उनकी आवभगत करना हम अपना कर्तव्य भी समझते हैं।
यूं तो बाजारों में कई तरह की मिठाई मिलती है और इनके भाव भी कम नहीं होते हैं लेकिन इन महंगी मिठाइयों के बीच होली की पारंपरिक मिठाइयों की भी बात कुछ अलग ही होती है। अर्थात होली के लिए घर में बनी मिठाईयां…वाह क्या बात है…! वैसे महिलाओं का कहना है कि भले ही बाजार से मिठाईयां लाकर मेहमानों का मुंह मीठा करा दिया जाए लेकिन घर में बनी मिठाईयों की बात अलग ही होती है और ये सस्ती भी पड़ती है। वहीं कम से कम सप्ताह तक तो खराब तक भी नहीं होती है। महिलाओं ने बताया कि गुजिया, शकरपारे, बेसन के लड्डू, मावा बर्फी, शाही मावा गुजिया, ठंडाई आदि के साथ ही नमकीन में चकली, सेंव गाठिये आदि प्रमुख होते है और इन सभी से मेहमानों का स्वागत करने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। महिलाओं का यह भी कहना है कि बाजारों की मिठाइयां और नमकीन महंगे भी होते हैं और मौजूदा समय में इनकी क्वालिटी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा एक दो दिनों में ही नमकीन का तो तेल चढ़ने लग जाता है। वहीं मावा या बंगाली मिठाईयां एक दिन से ज्यादा चलाई नहीं जा सकती है। घर में बनी मिठाइयों की शुद्धता की गारंटी होती है और होली से लेकर रंगपंचमी तक मेहमानों का आना जाना बना रहता है इसलिए घर में बनी मिठाइयां और नमकीन ही पूरा पड़ता है। इधर घरों की रसोई घरों से मिठाई बनाने की सुगंध उठी तो वहीं बाजारों में भी कच्ची सामग्री और मावा आदि खरीदी करने का सिलसिला जारी रहा। इधर होली-धुलंडी के त्योहार के साथ ही शहर में पांच दिवसीय रंगोत्सव की शुरूआत हो गई है।
गेर निकाली जाएगी
धुलंडी के अवसर पर तो भागसीपुरा और सिंहपुरी जैसे पुराने मोहल्लों से गेर निकालने की परंपरा को कायम रखा ही गया। वहीं रंगपंचमी पर भी इन दोनों मोहल्लों से परंपरागत गेर निकाली जाएगी। इसके साथ ही रंगपंचमी के बाद से ही गुड़ी पड़वा तक विभिन्न क्षेत्रों से गेर निकाली जाएगी और इस अवसर पर मनोहारी झांकियां भी सजेगी। चलसमारोह को देखने के लिए भी मार्गों पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहेंगे। गौरतलब है कि सिंहपुरी और भागसीपुरा आदि क्षेत्रों से परंपरागत गेर चलसमारोह के आयोजन होते हैं।