कमिशनखोरी बदस्तूर जारी, पैरेंट्स बेबस
उज्जैन। शहर मे विद्यालयो का नया सत्र चालू होते ही किताबो की दुकानो पर पैरेंट्स व छात्रो का हुजूम लगा हुआ नजर आ रहा है पर सभी दुकानो पर ये भीड नही है। ये भीड फ्रीगंज की कुछ चुनिंदा दुकानो पर ही देखने को मिल रही है।जांच पडताल करने पर पता चलता है कि शहर के बहुत सारे स्कूलो ने जिसमे मिशनरी स्कूल भी शामिल हैं उन्होने एक निश्चित दुकानदार से सांठगांठ करके अपने स्कूलो की किताबें खरीदने के लिए पालको को मजबूर कर दिया है। ऐसी पुस्तको की दुकान पर पांव रखने की भी जगह नहीं है। पालको की सुनवाई लगभग एक घंटे तक खडे रहने के बाद हो रही है तब जाकर उसे मोटी रकम पर निर्धारित कक्षा का पुस्तको का सेट मिलता है।
शुद्ध कमिशनबाजी का खेल
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स्कूलो का कोर्स केवल शहर की एक निश्चित दुकान पर ही क्यो मिल रहा है? ऐसा इसलिए है कि स्कूल संचालको ने प्राइवेट प्रकाशको की पुस्तकें चला रखी हैं जो काफी महंगी होती हैं। इसके अलावा ड्राइंग काॅपी, कवर, नेमचिट आदि फालतू की स्टेशनरी का चार्ज जोडकर बेचारे पालक को पकड़ाया जाता है। दुकानदार इसकी ऐवज मे स्कूल संचालको को एक मोटी रकम पहले ही कमिशन के रूप मे पकड़ा आता है और फिर स्कूल संचालक खुश होकर अपने स्कूल की सभी कक्षाओं की किताब काॅपी का ठेका ऐसे दुकानदार को दे देता है। किताबें भी इतनी महंगी कि कक्षा पांचवी का ही सेट साढे तीन हजार से साढे चार हजार का। अभिभावक बेचारा बेबस होकर ये महंगी किताबो का सैट घंटो लाइन मे खडा होकर प्राप्त करता है। उसकी मजबूरी ये रहती है कि उक्त किताबें दूसरी दुकानो पर मिलती ही नहीं हैं।
मुख्यमंत्री के आदेश को धता बताकर धंधा चरम पर
गौर तलब है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस समस्या को समझकर ऐसे निजी स्कूलो पर कार्रवाई के निर्देश मुख्य सचिव को दिए हैं और दो लाख के जुर्माने का प्रावधान भी है बावजूद इसके मुख्यमंत्रीजी के गृहनगर मे ही आज ये हालत रही कि निर्धारित चुनिंदा दुकान के मालिक बेखौफ होकर चांदी काटने मे लगे हुए थे
शिक्षाविभाग का लचर रूख
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निजी स्कूलो द्वारा अभिभावको को हर साल बाध्य किया जाता है कि वे निर्धारित दुकान से ही कोर्स की किताबें व स्टेशनरी खरीदें । अभिभावक लाचार होकर ऐसी दुकानो पर घंटो खडे रहकर कोर्स का सेट प्राप्त करने की जुगत मे रहता है और अपनी पसीने की कमाई भी पढाई के नाम पर जेब कटाकर अदा करता है। हैरत की बात तो ये है कि ये सब गोरखधंधा शिक्षाविभाग के आला अधिकारियो की आंखो के सामने ही चल रहा है और वे मूक बने इसे देख रहे हैं ऐसे मे प्रश्न उठता है कि वे मौन साधे हुए क्यो है और कार्रवाई करने से क्यो परहेज कर रहे हैं? बेचारे अभिभावको की सुनवाई कहीं होंगी भी या हर साल वह अपनी जेब कटाने के लिए मजबूर रहेंगे।