महंगाई की मार मवेशियों के आहार पर भी

-कृषक जागृत जमकर निकाला जा रहा गेहुं कटाई के बाद  सुखला

 

-1200 रूपए प्रति बडी ट्राली कटाई इस बार 1500 रूपए में

उज्जैन। कृषक जागृत होकर अब गेंहु से बचे हिस्से से सुखला निकालने में लगा है। नरवाई जलाने के मामले घटने लगे हैं। हार्वेस्टर से गेहुं कटाई के बाद बचने वाले हिस्से को भी मशीन से कटाई करवाकर कृषक उससे सुखला ले रहा है। महंगाई की मार मवेशियों के आहार पर भी पडी है। सुखला कटाई 1200 रूपए प्रति बडी ट्राली इस बार 1500 रूपए में हो रही है।

जिले में अब सुखले से कृषक आय भी कर रहा है और ग्रामीण स्तर पर व्यापार विनिमय में भी उसका उपयोग किया जा रहा है। सुखला बाजार में हाल की स्थिति में 400-500 रूपए प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा रहा है। सुखले को मवेशियों को खिलाने के काम में लिया जाता है। हरी चरी और खली के साथ इसे मिलाकर खिलाया जाता है। अन्य तरीकों से भी इसे मवेशियों को खिलाया जाता है। अधिकांश सुखला ही मवेशियों को आहार में मिलता है। भारतीय किसान संघ के प्रांतीय अध्यक्ष कमलसिंह आंजना बताते हैं कि हार्वेस्टर से गेंहु की फसल लेने के बाद बचे हिस्से को मशीन से कटाई कर सुखला लिया जाता है। अधिकांश कृषक खेतों से सुखला ले रहे हैं। पूर्व में 1200 रूपए में बडी ट्राली पतरे लगाकर जाली में डबल भरी जाती थी। इस बार इसके रेट 1500 रूपए हो गए हैं। इसके पीछे आईल,मजदूरी,डीजल, किराया बढना सामने आ रहा है।

नरवाई जलाने का काम घटा- धीरे –धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में नरवाई जलाने के मामले घटने लगे हैं। अब ज्यादा से ज्यादा उसे उपयोगी बनाया जा रहा है। खेत में ही उसे ओटने की प्रक्रिया भी बराबर कृषक अपना रहे हैं। सुखला लेने के बाद भी नीचे के स्तर पर बचने वाले हिस्से को कई कृषक जलाते हैं इससे प्रदुषण, दुर्घटनाओं की स्थितियां बनती हैं।

ऐसे हो रहा ग्रामीण स्तर पर व्यापार-

जिन कृषकों के पास मवेशी नहीं है वे अपने पास के कृषक जिनके पास मवेशी हैं उन्हें खूद के खेत का सुखला  दे रहे हैं। इसके एवज में मवेशी वाला कृषक उसे पानी देने की प्रतिबद्घता दे रहा है। ऐसे ही अन्य कई आपसी सहयोग की प्रतिबद्धता देकर सुखले से निजात पाई जा रही है।

दिसंबर –जनवरी में होता है महंगा-

श्री आंजना बताते हैं कि सुखला अभी तो जिले में जमकर आ रहा है। महंगाई की मार से मवेशियों का आहार भी नहीं बच सका है। उनके अनुसार दिसंबर –जनवरी के समय में सुखला काफी महंगा हो जाता है। उस दौरान अधिकांश कृषकों के खेतों में चरी खत्म हो जाती है। कृषक गेंहू और चने की फसल की बोवनी कर रहा होता है। ऐसे समय में सुखला 700-800 रूपए प्रति क्विंटल तक बिकता है।