खुसूर-फुसूर    काश आदेश पर पालन हो जाता…

दैनिक अवन्तिका ब्रह्मास्त्र

खुसूर-फुसूर

काश आदेश पर पालन हो जाता…

मंदिर में हुए अग्निकांड में एक जान को लील लिया। जमकर उडाया गया गुलाल और उसके बाद मंदिर के गर्भगृह में हुए अग्निकांड में घायल वृद्ध सेवक का 12 दिन तक इंदौर के अस्पताल में उपचार जारी रहा और उनकी स्थिति नहीं सुधरती देख उन्हें  डाक्टरों की सलाह पर मुंबई ईलाज के लिए भेजा गया था। पिछले 3 दिनों से उनका उपचार चल रहा था। मंगलवार को शुगर के साथ ही उनके शरीर के कुछ और अंगों ने भी गडबड शुरू कर दी और देर रात में उनका मुंबई में निधन हो गया। उनका ईलाज शासन प्रशासन के निर्देश एवं देखरेख में ही जारी था। प्रशासन का नुमाइंदा भी उनके साथ था। परिजनों ने इस बात को स्वीकारा है। घटना के बाद शासन प्रशासन का सहयोग उल्लेखनीय और मानवीय रहा है। संवेदनशीलता पुरी तरह से देखी गई है। बस एक ही बात की पीडा रही की महाकाल के एक सेवक की असमय ही मौत हो गई। नित्य भस्मार्ती में सेवक का आना और महिलाओं के लिए भस्मी चढाने के दौरान आगाह आवाज लगाना सबकों खलेगा। खुसूर-फुसूर है कि काश प्रशासक के बाहर से गुलाल लाने पर लगाए गए प्रतिबंध का पालन वे जिम्मेदार करवा लेते जिन्हें आदेश जारी किया गया था। इन जिम्मेदारों में मंदिर से जुडे सभी पक्ष शामिल हैं। मूल जिम्मेदारी सिक्योरिटी एजेंसी के साथ ही पुलिस की देखी जा रही है। इनके पास ही महाकाल में आने वाले श्रद्धालुओं एवं मंदिर से संबंधित तमाम पक्षों की जांच के अधिकार होते हैं। दोनों ही पक्षों के साथ ही आदेश जारीकर्ता मंदिर के तत्कालीन प्रमुख अधिकारी भी उस दिन भस्मार्ती में मौजूद थे लेकिन उन्होंने भी इतनी मात्रा में उडाए जा रहे गुलाल को लेकर न तो आपत्ति ही ली और न ही आदेश पर अमल करवाने के लिए ही मौजूद सुरक्षा एजेंसी के ही लोगों को आदेशित ही किया। काश घटना वाले दिन ये सभी लोग अपने कर्त्तव्यों के प्रति सजग होते तो आज महाकाल सेवक अपने बीच …..