डॉ. आंबेडकर की कृषि व्यवस्था का आधार सामाजिक न्याय : प्रो. रामकुमार सिंह
उज्जैन। भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर बाबा साहेब का व्यक्तित्व, कृतित्व, उनका जन्म दिवस भारत समेत पूरे विश्व में पर्व के रूप में मनाया जाता है। 14 अप्रैल समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बाबा साहेब भारत एक कृषि प्रधान देश के मर्म को अच्छी तरह से जानते थे। इसीलिए उन्होंने भारतीय कृषि के लिए चकबंदी, औद्योगीकरण, पूंजी और पूंजीगत वस्तुओं को बढ़ाने का विचार किया।
उक्त विचार डॉ. आम्बेडकर पीठ व कृषि विज्ञान अध्ययनशाला के संयुक्त तत्वावधान में बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर की 133वीं जयंती के अवसर पर आयोजित डॉ. आम्बेडकर स्मृति व्याख्यानमाला में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय, बनारस (उ.प्र.) के एग्रोनॉमी के राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. रामकुमार सिंह ने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर का कृषि दर्शन : वर्तमान संदर्भ में व्याख्यान में कही।
बाबा साहब ने 1918 में उनके लेख स्माल होल्डिंग्स इन इण्डिया एण्ड देयर रेमेडीज में कृषि भूमि सुधार के संबंध में अपना विचार दिया। 1936में स्थापित इडिपेन्डेंट लेबर पार्टी के कार्यक्रम में कहा था खेतिहरों की गरीबी का कारण जोतों का विभाजन और उन पर जनसंख्या का दबाव है। इसके समाधान हेतु पुराने उद्योगों का पुनर्स्थापन, नए उद्योगों की स्थापना आवश्यक है। डॉ. आम्बेडकर पहले अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने उपखंडन की समस्या का परीक्षण किया और आर्थिक जोतों को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित किया।
आज आवश्यकता है बाबा साहेब के कृषि संबंधी विचारों को अमल में लाने की। उनके कृषि विचार मौलिक व क्रांतिकारी विचार है। जिनमें खेती, किसान और कृषि व्यवस्था, भूमि सुधार मुख्य है। उन्होंने छोटे किसान राहत विधेयक 10 अक्टूबर 1928 पेश किया। जिसका उद्देश्य उच्च कृषि व्यवस्था और सामाजिक न्याय ही था व पारंपरिक कृषि संसाधन, सामूहिक कृषि ही श्रेष्ठ विकल्प के रूप में लोकतांत्रिक समाजवाद को स्थापित कर सकते हैं। बाबा साहेब को सिम्बल ऑफ नाऊलेज कहा गया है और जीवनभर समानता के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. आम्बेडकर को समानता और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, दृढ़ निश्चयी, साहसी, संघर्षशील, जुझारू और धुन के पक्के बाबा साहेब आधुनिक भारत के शिल्पकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। डॉ. आम्बेडकर का पांडित्य और ज्ञान सर्वोत्कृष्ट है। डॉ. आम्बेडकर मूलत: अर्थशास्त्री हैं क्योकि उनका अध्ययन, अध्यापन, लेखन का प्रारम्भ अर्थशास्त्र से ही हुआ है। बाबा साहेब के व्यक्तित्व का उच्च गुण उनका शांत स्वभाव, अध्ययन, चिन्तन, मनन लिपिबद्ध उनके व्यक्तित्व के स्थायी गुण हैं। यही कारण है कि उनकी वक्तृत्व कला से संसद भी प्रभावित रही है। आज के दिवस भी मतलब 14 अप्रैल डॉ. आम्बेडकर जयंती पर हमारी बाबा साहेब को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके व्यक्तित्व की तीन बातों को आत्मसात करें। पहला शारीरिक स्वास्थ्य, दूसरा मानसिक स्वास्थ्य अर्थात् मानसिक सुदृढ़ता, तीसरा चारित्रिक सुदृढ़ता।
प्रो. सिंह ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर वैज्ञानिक दृष्टि से आर्थिक विश्लेषण करते हैं। उनका मत है कि प्रगति का माप अथवा विकास आर्थिक आधार पर ही हुआ है, जिसमें आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ सामाजिक चिन्तन में चेतना का विकास होगा। बाबा साहेब भारतीय व्यवस्था को न्याय संगत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना चाहते थे जिसमें समानता हो।
डॉ. आम्बेडकर आधुनिक युग के महान सामाजिक विचारक- कुलगुरु
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर आधुनिक युग के महान सामाजिक विचारक है। बाबा साहेब के अध्ययन का विस्तार तथा उनकी दृष्टि की व्यापकता नए विचारों का अंकुरण करती है। स्थिति-परिस्थितियों के विश्लेषण का गहनता व सोच की तार्किक शक्ति नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल देती है। उनके जल संरक्षण और प्रबंधन संबंधी विचारों की आज आवश्यकता है। डॉ. आम्बेडकर ने प्रकृति, गाँव, भूमि, कृषि, जल, समुदाय, उद्योग, प्रौद्योगिकी विज्ञान, विकास के आधुनिकीकरण की बात की है। उन्होंने जल के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू को स्पष्ट किया है। बाबा साहेब का ही प्रयास था जिससे सिंचाई जल विद्युत पर केन्द्र राज्य मुद्दों की निगरानी के लिए एक नदी घाटी प्राधिकरण गठन हुआ। इसलिए आज कृषि और जल के लिए जखनी मॉडल की खेत में मेड़, मेड़ में पेड़ की।
स्वागत भाषण पीठ की गतिविधियाँ व विषय प्रवर्तन पीठ के आचार्य प्रो. सत्येन्द्र किशोर मिश्रा ने दिया। कार्यक्रम का संयोजन संचालन सहायक प्राध्यापक डॉ. निवेदिता वर्मा ने किया। आभार कृषि विज्ञान अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. राजेश टेलर ने माना। इस अवसर पर डॉ. पुष्पेन्द्र घोष, डॉ. प्रभुदयाल पंवार, डॉ. वर्षा पटेल, डॉ. उमा पाटीदार सहित कृषि विज्ञान अध्ययनशाला व सांख्यिकी अध्ययनशाला के प्राध्यापकगण विशेष रूप से उपस्थित थे। अंकुर टिटवानिया व श्रीमती चंदा बाई का विशेष सहयोग रहा।