वैदिक घडी के पास होने से 305 साल पुरानी वेधशाला का आकर्षण दोहरा हुआ
-पुरातन यंत्रों के साथ वेधशाला में तारामंडल,आधुनिक संसाधन और पास में ही वैदिक घडी से पर्यटकों में नया रूझान आया
उज्जैन। 305 साल पुरानी शासकीय जीवाजी वेधशाला वैसे ही अपने में इतिहास समेटे बैठी है लेकिन हाल ही में महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ की वैदिक घडी ने इसके आकर्षण को दोहरा कर दिया है। आने वाले पर्यटकों को वेधशाला में खगोलीय जानकारी पुराने एवं आधुनिक यंत्रों से मिल रही है तो वैदिक घडी से सनातन का ज्ञान भी मिल रहा है और सुर्योदय से कालगणना की जानकारी भी।
उज्जैन को वैदिक कालगणना का केंद्र कहा जाता रहा है। वर्तमान में यह वेधशाला और वैदिक घडी के एक ही स्थान पर होने से और अधिक प्रभावी हो गया है। वैदिक घडी में मुहूर्त,के साथ ही नक्षत्र एवं अन्य सनातन ज्योतिष जानकारी पर्यटकों को मिल रही है। इसी गणना को वेधशला अपने पंचांग में पिछले 82 वर्षों से प्रकाशित कर रहा है। वेधशाला में राजा जयसिंह ने तो चार ही यंत्र लगवाए थे । शंकु यन्त्र स्व. गो. स. आपटे के निर्देशन में तैयार किया गया ।
देश में 5 वेधशाला, 2 पूरी तरह संचालित-
राजा जयसिंह द्वारा उज्जैन सहित दिल्ली, जयपुर, मथुरा, बनारस में वेधशालाओं का निर्माण करवाया गया था। इनमें से मात्र उज्जैन और जयपुर की वेधशाला ही पूरी तरह से संचालित हो रही है। शेष स्थानों में मथुरा की वेधशाला का इतिहास में ही नाम बचा है वर्तमान में वहां कुछ भी नहीं है। दिल्ली की वेधशाला में कोई विश्लेषण नहीं किया जाता है। बनारस में किले के उपर बनी वेधशाला बहुत ही छोटे आकार की है। जयपुर की वेधशाला में पुराने यंत्र ज्यादा हैं और उसका संचालन रखरखाव पूरी संजीदगी के साथ किया जा रहा है। उज्जैन की वेधशाला में पुराने 5 यंत्रों के साथ आधुनिक संसाधन उपलब्ध हैं और तारामंडल से पर्यटकों में खगोलीय जानकारी का आकर्षण बनाया जाता है।
1942 से निरंतर पंचांग का प्रकाशन-
वेधशाला अधीक्षक डा.राजेन्द्र प्रकाश गुप्त बताते हैं कि कालांतर में जिस कार्य के लिए वेधशाला का निर्माण किया गया था उस कार्य को उज्जैन की वेधशाला ने 1942 से अपनी निरंतरता में रखा है। यहां से प्रकाशित पंचांग प्रमाणिकता के लिए देशभर में पहचान रखता है। पंचांग में ग्रहण,गृह स्थिति,युति,गणितीय स्थिति या यूं कहे की ज्योर्तिगणित की प्रमाणित जानकारी होती है।
ऐसा है कुछ 305 वर्ष का वेधशाला का सफर-
शासकीय जीवाजी वेधशाला. उज्जैन के अधीक्षक राजेन्द्र प्रसाद गुप्त बताते हैं कि इस वेधशाला का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने जब वे सन् 1799 में दिल्ली के सम्राट मुहम्मद शाह के शासन काल में मालवा के गवर्नर होकर उज्जैन में रहे थे, किया था। राजा जयसिंह शूर सेनानी, राजनीतिज्ञ और व्यवस्थापक तो थे ही, विशेष रुप से विद्वान भी थे। आपने तत्कालीन उपलब्ध पर्शियन और अरबी भाषा में लिखित ज्योतिष गणित ग्रन्थों का भी अनुशीलन किया था। स्वयं ने भी ज्योर्तिग्रन्थों की रचना की । समरकन्द में तैमूरलंग के नाती मिर्ज़ा उलूक बेग ने जो ज्योतिश्शास्त्र के मर्मज्ञ थे, वेधशाला बनवाई थी। सम्राट मुहम्मद शाह की आज्ञा से भारत में राजा जयसिंह ने उज्जैन, जयपुर, दिल्ली, मथुरा तथा वाराणसी में वेधशालाएं बनवाईं। इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने अपनी योग्यता से नए यन्त्रों का निर्माण करवाकर स्थानीय वेधशाला पर उन्होंने करीब आठ वर्ष तक स्वयं ग्रह नक्षत्रों के वेध लेकर ज्योर्तिगणित के अनेक प्रमुख उपकरणों में संशोधन किया । तत्पश्चात दो शताब्दी तक यह वेधशाला उपेक्षित रही। सिद्दान्तवागीश स्व. श्री नारायणजी व्यास और गणक चूड़ामणि स्व. श्री गो. स. आपटे वेधशाला के प्रथम अधीक्षक थे, के प्रस्तावानुसार स्व, महाराजा माधवराव सिंधिया ने सन 1923 में इसका पुनरुद्धार करवाकर वैधशाला का उपयोग करने के लिए व्यवस्था की। तभी से यह वेधशाला निरन्तर कार्य कर रही है। वेधशाला पर सम्राट, नाडीवलय, दिगंश और भिति ये चार यन्त्र महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित है। शंकु यन्त्र स्व. गो. स. आपटे के निर्देशन में तैयार किया गया । अपनी स्थिति के अन्तिम क्षणों को प्राप्त दिगंश यन्त्र पुन: निर्माण सन 1974 में एवं शंकु यन्त्र का पुन निर्माण सन 1982 में हुआ । यन्त्रों की जानकारी देने वाले संगमरमर के. सूचनापट्ट हिन्दी व अंग्रेजी में सन 1983 में लगाये गये हैं।
परिसर में मंदिर के घंटे की आवाज-
डा.गुप्त बताते हैं कि वेधशाला के नजदीक ही वैदिक घडी महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ ने स्थापित की है। इस घडी में मुहुर्त परिवर्तन के साथ ही मंदिर में बजने वाले घंटे की आवाज निकलती है। काफी तेज आवाज से पूरा आसपास का परिसर ही इससे आच्छादित होता है। लगभग हर 48 मिनिट पर मुहूर्त का परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के समय घडी से मंदिर में बजने वाले घंटे के समान आवाज कुछ मिनिट तक निकलती रहती है। 30 मुहूर्त के बदलने पर 30 बार घडी से यह आवाज निकलती है। खास यह है कि पास ही में नदी का घाट है और यहां मंदिर होने से यह आवाज प्राकृतिक सी महसूस होती है।