महाकाल को गर्मी से बचाने के लिए 11 मटकियों से बहेगी सतत जलधाराएं – गर्भगृह में 24 अप्रैल से बांधी जाएगी गलंतिका, भस्मारती से संध्या पूजा तक ठंडक
दैनिक अवंतिका उज्जैन। भगवान महाकाल को भीषण गर्मी से बचाने के लिए 11 मटकियों से जलधारा प्रवाहित की जाएगी। यह मटकिया गर्भगृह में 24 अप्रैल से लगा दी जाएगी। प्रतिदिन ये मटकिया सुबह की भस्मारती समाप्त होने के बाद लगाई जाएगी और शाम को संध्या पूजन में हटा दी जाएगी। इस प्रकार दिनभर शिवलिंग पर भगवान को सतत जलधारा से ठंडक प्रदान होती रहेगी।
वैशाख और ज्येष्ठ मास में तेज गर्मी होती है। इस दौरान भगवान को भी ठंडक प्रदान करने के लिए जतन किए जाते हैं। इसलिए महाकाल मंदिर के गर्भगृह में ये मटकिया लगाई जाती है जो कि मिट्टी की होती है। इन मटकियों को पुजारी-पुरोहितों के द्वारा जल से भरा जाता है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से ये मटकिया बांधने की परंपरा है जो इस बार 24 अप्रैल को आ रही है। मटकियों से जलधारा प्रवाहित करने का क्रम दो महीने तक चलता है।
चांदी के कलश के साथ नदियों के
नाम वाले 11 कलशों से जलधारा
महाकाल मंदिर समिति के सदस्य एवं पुजारी प्रदीप गुरु ने बताया भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए गर्भगृह में शिवलिंग पर मिट्टी के 11 कलश बांधे जाएंगे। नियमित चांदी के एक कलश की जलधारा के अलावा 11 अतिरिक्त मिट्टी के कलशों की जलधारा भी प्रवाहित होती रहेगी। इन कलशों के नाम भी होते हैं जिस पर गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी सहित अन्य नदियों के नाम लिखे हैं। मान्यता है कि भगवान महाकाल इससे तृप्त होकर समस्त पृथ्वी के जीव-जंतु, जनता-जनार्दन का कल्याण करते है।
भस्मारती में भी अभी महाकाल
ठंडे जल से ही स्नान कर रहे है
गर्मी के दिनों में भगवान महाकाल रोज तड़के 4 बजे होने वाली भस्मारती में भी ठंडे जल से ही स्नान कर रहे हैं। इसी प्रकार ठंड के दिनों में भगवान महाकाल को पुजारी गर्म जल से स्नान कराते हैं। वर्ष में दो बार 6-6 माह के अंतराल से भगवान महाकाल की दिनचर्या में मौसम के अनुरूप बदलाव किया जाता है। दिवाली से ठंड की शुरुआत होती है तब गरम जल से स्नान शुरू होता है जबकि होली से गर्मी शुरू होते ही ठंडे जल से स्नान शुरू हो जाता है।