सोश्यल मिडिया पर जोर ,परंपरागत प्रचार सामग्री का उपयोग कमजोर
-स्थानीय बाजार को नहीं मिल रहा चुनाव से कोई खास आर्थिक लाभ
उज्जैन। देश के आम चुनाव के चौथे दौर में उज्जैन –आलोट सीट पर 13 मई को मतदान होना है। प्रचार के लिए शेष 19 दिन बचे हैं। अभी तक के प्रचार प्रसार में प्रत्याशियों ने सोश्यल मिडिया पर ही जमकर जोर दिया है। प्रचार प्रसार की परंपरागत सामग्री इस बार पूरी तरह से कमजोर दिखाई दे रही है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है पिछले चुनावों के मुकाबले परंपरागत सामग्री का उपयोग मात्र 30 फीसदी ही हो सकेगा ।
कांग्रेस हो या फिर भाजपा या अन्य कोई दल ,इस बार राजनीतिक पार्टियों का अधिक ध्यान सोशल मीडिया पर ही है। चुनाव में सोश्यल मिडिया के बढता क्रेज इसलिए भी है क्योंकि 2019 के मुकाबले 2024 में सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों की संख्या में 4 गुना बढ़ोतरी हुई है। पहले कुल जनसंख्या में से 19 प्रतिशत लोग ही सोशल मीडिया पर थे। वर्तमान में यह आंकड़ा 65 फीसदी तक पहुंच चुका है। घर –घर में एंड्राईड मोबाईल का उपयोग महिलाएं बच्चे कर रहे हैं। लिहाजा, बैनर- पोस्टर के उपयोग में पहले के मुकाबले काफी कमी आई है।
इस बार चुनाव में परंपरागत टोपी,दुपटृटा और अन्य सामग्रियों का बाजार ठंडा ही रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सोशल मीडिया के दौर में प्रचार-प्रसार, फोटो और वीडियो के माध्यम से बहुत तेजी से किया जा रहा है। झंडे का उपयोग संपत्ति विरूपण जैसे नियमों के तहत धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। शासकीय संपत्ति पर झंडे लगाए की मामला दर्ज होने की आयोग की तैयारी होती है।
30 फीसदी भी नहीं बचा काम –
परंपरागत सामग्री बेचने वाले व्यापारियों का कहना है कि पहले के मुकाबले झंडे ,बैनर ,दुपट्टा और अन्य सामग्री की बिक्री में 60-70 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी आई है। पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार परंपरागत सामग्री के उपयोग में और ज्यादा कमी आई है। इसके पीछे वे सोश्यल मिडिया के बहुत ज्यादा सक्रिय होने को मान रहे है। परंपरागत सामग्री की अपेक्षा फ्लेक्स का उपयोग बढ गया है। इस बार इसके भी कम उपयोग की स्थिति सामने आ रही है। पिछले चुनावों में जहां गमछा, टी-शर्ट, पटका व झंडे गुजरात के अहमदाबाद और सूरत में तथा टोपियां, बैज, मफलर, छतरी, स्टिकर, मुखौटा आदि दिल्ली, हरियाणा, लखनऊ और मथुरा से बनकर स्थानीय बाजार में इंदौर से आते थे।
सीधे प्रदेश स्तर से ही मिल रही सामग्री-
इस बार प्रमुख राजनैतिक दलों ने कार्यालयों से ही परंपरागत सामग्री प्रत्याशियों को उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। प्रमुख दल बड़े स्तर पर दिल्ली- लखनऊ की बड़ी कंपनियों को ऑर्डर दे देते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर इस काम को करने वालों को सामान्य से भी कम काम मिला है। इससे स्थानीय स्तर पर जो राजस्व चुनावों में आता था वह भी नहीं आया है।