हनुमान जयंती पर विशेष– इंदौर -उज्जैन के बीच सांवेर में विराजित है श्री राम विजय पाताल उलटे हनुमान
अहिरावण के बंदी श्री राम -लक्ष्मण को छुड़ाने यहीं से किया था बजरंगबली ने पाताल में प्रवेश
इंदौर। शहर से महज 30 किमी दूर सांवेर में स्थित श्रीराम पाताल विजय उल्टे हनुमान मंदिर में स्थापित प्रतिमा सीधी नहीं बल्कि उल्टी है, अर्थात सिर पाताल की ओर तथा पांव आकाश की ओर। एक प्रकार से यह मंदिर इंदौर और उज्जैन के बीच स्थित है। यह एक ऐसा मंदिर है, जिसका संबंध रामायण काल से है। यह स्थान दिव्य और चैतन्य तो है ही, यहां मन को शांति का अनुभव भी होता है। कहा जाता है कि पूरी दुनिया में केवल यही एक ऐसा मंदिर है, जहां हनुमानजी की सीधी नहीं बल्क उल्टी प्रतिमा है। इसी उल्टी प्रतिमा की आराधना करने पर सारे उल्टे और बिगड़े काम भी संवर जाते हैं। राम नवमी और हनुमान जन्मोत्सव पर यहां भक्तों की बहुत भीड़ रहती है। वैसे ही साल भर भी यहां दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है।
यहां से हनुमानजी ने किया था पाताल में प्रवेश
मान्यता है कि यही वह स्थान है जहां से हनुमानजी ने पाताल में प्रवेश किया था। रामायण में वर्णन आता है कि श्रीराम-रावण युद्ध के दौरान जब अहिरावण छल से श्रीराम-लक्ष्मण को बंदी बनाकर बलि देने के लिए पाताल लोक में ले गया था, तब हनुमानजी ने उन्हें बचाने के लिए इसी स्थान से पाताल में प्रवेश किया था। मंदिर के सेवादार पंडित अमित व्यास बताते हैं कि पुराण के अनुसार पृथ्वी लोक से पाताल लोक में प्रवेश करने के केवल दो ही मार्ग का वर्णन है। इनमें से एक अवंतिका के समीप और दूसरा मार्ग काशी में है।
सांवेर वही क्षेत्र है, जो अवंतिका नगरी के समीप है, इसलिए हनुमानजी ने यहीं से पाताल लोक में प्रवेश किया था। जिस तरह गोताखोर नदी में छलांग लगाता है, तो सिर नीचे की ओर तथा पांव ऊपर की होते हैं, उसी तरह हनुमानजी ने भी पाताल में प्रवेश किया था इसलिए यहां उनकी प्रतिमा का सिर नीचे और पांव ऊपर हैं। इसीलिए इनका नाम उल्टे हनुमान है। जिस समय हनुमानजी ने पाताल में प्रवेश किया था तब उनकी परछाई एक शिला पर अंकित हो गई। उसी शिला की पूजा यहां आज भी की जाती है।
इसलिए भी है खास है यह स्थान
विशाल क्षेत्र में बने इस मंदिर में हनुमानजी के विग्रह के साथ-साथ श्रीराम, सीतामाता और लक्ष्मणजी की मनोहारी मूर्तियां हैं। इसके अलावा यहां एक समाधि भी बनी हुई है। यह यहां रहने वाले संत खाकी बुआ की है। कहा जाता है कि उन्होंने जीवित अवस्था में ही समाधि ले ली थी। मंदिर के समीप ही ख्याता नदी (वर्तमान नाम कान्ह नदी) भी है। मंदिर परिसर में विशाल वृक्ष और पक्षियों का कलरव सुकून देता है, तो मंदिर के भीतर गूंजने वाली राम नाम धुन मन को भक्ति से भर देती है।
यहां हनुमान अष्टमी, हनुमान जयंती और श्रीराम नवमी पर विशेष उत्सव भी होते हैं। यह एक ऐसा स्थान है, जहां प्रचुर हरियाली है। इस कारण यह दोपहर में भी ठंडक प्रदान करता है। शीतल पेयजल की भी यहां व्यवस्था है और सुविधागृह भी बने हुए हैं। यह मंदिर सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है इसलिए आप इस बीच किसी भी वक्त यहां जा सकते हैं।