व्यापमं घोटाले की जांच पर सवाल उठाती याचिका हाई कोर्ट ने की खारिज

 

इंदौर। व्यापमं घोटाला जांच पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने यह गलत धारणा के आधार पर प्रस्तुत की है। याचिका को सारहीन मानते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास इसे दायर करने का वैधानिक अधिकार नहीं था।
याचिका पूर्व विधायक पारस सकलेचा ने दायर की थी। इसमें कहा था कि व्यापमं घोटाला मामले में नौ वर्ष बाद भी अब तक इसकी जांच ही पूरी नहीं हुई है। मांग की गई थी कि केंद्र और राज्य शासन को आदेश दिया जाए कि वे एक तय समय सीमा में मामले की जांच पूरी करें। केंद्र की ओर से एडवोकेट हिमांशु जोशी और राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने पैरवी करते हुए याचिका निरस्त करने की मांग की। न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद याचिका निरस्त कर दी।

यह है व्यापमं घोटाला

व्यापम घोटाला वर्ष 2013 में सामने आया था। यह परीक्षा घोटाला था। व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम द्वारा वर्ष 2009 की प्री मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) से जुड़े मामलों में इंदौर पुलिस ने 20 नकली अभ्यर्थियों को गिरफ्तार किया था, जो असली अभ्यर्थियों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। इन लोगों से पूछताछ में जगदीश सगर का नाम घोटाले के सरगना के रूप में सामने आया था, जो एक संगठित रैकेट के माध्यम से इस घोटाले को अंजाम दे रहा था।

2013 में एसटीएफ को सौंपी थी जांच

सगर की गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार ने वर्ष 2013 में विशेष कार्य बल (एसटीएफ) गठित कर व्यापमं घोटाले की जांच एसटीएफ को सौंप दी। वर्ष 2015 से वर्ष 2000 तक सैकडों लोगों को इस घोटाले में गिरफ्तार किया गया था। इसमें मप्र के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा भी शामिल थे। वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी।