धनगर समाज ने बुलंद की मांगों को लेकर अपनी आवाज
सारंगपुर। वर्तमान में हरेक समाज अपने लोगो के उत्थान और जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नजर आ रहा है। इनमें से एक वर्षो से उपेक्षा का शिकार धनगर समाज ने भी लोस चुनाव के अवसर पर अपनी आवाज बुंलद कर सत्ताधारियों एवं विपक्षी नेताओं के पास अपनी मांगो को पहुंचाने का बिड़ा उठाया है। सारंगपुर, राजगढ़ सहित प्रदेशभर में धनगर जाति एवं उसकी उपजातियों की राजनीतिक दलों के द्वारा हो रही उपेक्षा को लेकर समाज ने विमुक्त घुमंतू एवं अर्ध घुमंतु जनजाति महासंघ के बैनर तले जनप्रतिनिधियों एवं दोनो ही पार्टियों के जिलाध्यक्षो को अपनी मांगो को पुरा करने के लिए ज्ञापन देने का अभियान चलाया गया है। ताकि इन पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्षो के द्वारा समाज को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
सारंगपुर में धनगर समाज के सामाजिक कार्यकर्ता सुनील धनगर ने जानकारी देते हुए बताया कि राजगढ सहित प्रदेश भर में जिला मुख्यालय पर संगठन के जिलाध्यक्ष व अन्य पदाधिकरियों के प्रतिनिधि मंडल ने ज्ञापन सौंपे है। हमारी मांग है कि प्रदेश में धनगर जाति अपनी उपजातियां पाल, बघेल, गायरी, गाडरी, गडरिया, भारूड, गाडरी, मझारी, श्रीपाल, हटकर, हाटकर कुरुमार, कुरुमा, दरिया घोसी, गवाला एवं महाराष्ट्रीयन धनगर के रूप में निवासरत है। श्री धनगर ने कहा कि प्रदेश में समाज की लगभग 80 लाख आबादी है और 230 विधानसभा सीटों पर समाज के लगभग 50 लाख मतदाता हैं। विधानसभा में 150 सीटों व लोकसभा में 29 सीटों में से 19 सीटों पर समाज के वोट निर्णायक भूमिका में होते हैं। देश प्रदेश की राजनीति में वोटर के रूप में निर्णायक भूमिका में होने के बावजूद लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा में समाज को कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। समाज के प्रतिनिधि पूर्व में भी इस आशय की जानकारी को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को ज्ञापन के माध्यम से अवगत करा चुके है। इसके बावजूद समाज व उसकी उपजातियों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। श्री धनगर ने बताया कि समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिलने से समाज कई कठिनाइयों से जूझ रहा है। अब ऐसा महसूस होने लगा है की प्रदेश की 80 लाख आबादी में से एक भी व्यक्ति नहीं, जिसे किसी तरह से नेतृत्व प्रदान किया जा सके। समाजजन की राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं देकर बहुसंख्यक समाज की लगातार अनदेखी की जा रही है। इसे लेकर धनगर समाज उपेक्षित महसूस कर रहे है।