कुकुरमुत्तों की तरह उग आए है शहर में बच्चों के लिए  गुरुकुल  आश्रम

 

विद्वान बनाने का  दावा….मनमर्जी का पाठ्यक्रम..मनमर्जी से  शुल्क….बगैर मान्यता से भी संचालित हो रहे है

उज्जैन। धार्मिक शहर उज्जैन में कुकुरमुत्तों की तरह गुरुकुल आश्रमों का संचालन हो रहा है। इन आश्रमों में भले ही बच्चों को संस्कृत या वेदों में विद्वान बनाने का दावा किया जाता हो लेकिन असल में स्थिति यह है कि न तो ऐसे कई गुरुकुल आश्रमों की कहीं से मान्यता है और न ही पाठ्यक्रम ही निर्धारित है। इसके अलावा मनमर्जी से भी शुल्क की वसूली होती है।
जबकि बताया गया है कि यदि बच्चों के लिए गुरुकुल आश्रम का संचालन किया जाता है तो इसके लिए बकायदा वेद विद्या प्रतिष्ठान से मान्यता लेना होती है ताकि जो भी कोर्स वहां निर्धारित होता है उसका समय अनुसार अध्ययन कराकर मान्य डिग्री या सर्टिफिकेट बच्चों को दिया जा सके। जो सर्टिफिकेट या डिग्री मिलती है उससे ही किसी बच्चे का भविष्य बन सकता है लेकिन शहर में स्थिति यह है कि कई आश्रम न तो मान्यता प्राप्त है और न ही वहां कोई नियम कायदे कानून ही होते है। इसका उदाहरण हाल ही में  दांडी   आश्रम के रूप में हमारे सामने आया है। गौरतलब है कि बड़नगर रोड स्थित दांडी  आश्रम में गुरुकुल दांडी आश्रम में वेद अध्ययन, कर्मकांड की शिक्षा लेने आए 19 नाबालिगों के साथ कुकर्म के मामले का बुधवार को पर्दाफाश हुआ था। किशोरों ने अपने स्वजन को उनके साथ हो रही हरकतों के बारे में जानकारी दी थी। इसके बाद  आश्रम में अभिभावकों और आश्रम संचालक गजानन सरस्वती के साथ बैठक हुई थी। इसी दौरान सेवादार अजय ठाकुर और आचार्य राहुल शर्मा के नाम सामने आए थे। आश्रम में बच्चों के साथ कुकर्म किए जाने का गंभीर मामला सामने आने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने बुधवार को ही एसआईटी का गठन कर दिया था। जांच अधिकारी आश्रम में पढ़ रहे सभी किशोरों के बयान दर्ज कर रहे हैं। इसके बाद आरोपियों की संख्या बढ़ सकती है।
काम ही कराते है…पढ़ाई कम

जानकारी मिली है कि बड़नगर या चिंतामण गणेश मार्ग आदि पर जितने भी गुरूकुल आश्रमों का संचालन हो रहा है वहां बच्चों को पढ़ाई कम कराते  है जबकि आश्रम का काम अधिक ही कराया जाता है। बताया यह भी गया है कि महज दो से तीन घंटे ही पढ़ाई का काम होता है
बाकी समय आश्रम का काम या फिर वहां के आचार्य की सेवा करना होती है। इसके, अलावा कहीं किसी जगह से भोजन के लिए बटुकों को बुलाया जाता है तो वहां भेज दिया जाता है। जानकारी यह भी मिली है कि अधिकांश गुरूकुल आश्रमों में बच्चों को सोने के लिए ठीक ढंग से बिस्तर तक नहीं मिलते है और बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा भी नहीं लिया जाता है। आश्रम के खास लोग तो कमरे में सो जाते है लेकिन बच्चों को हॉल या ऐसे कमरों में सुलाया जाता है जहां सर्प आदि का भय बना रहता है।