‘ये तो केवल झांकी है, पीओके अभी बाकी है’, काशी- मथुरा तो हमारे हैं ही
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी गोविंद देव गिरि महाराज ने इंदौर में कहा
इंदौर। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष और ट्रस्टी स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज ने कहा कि कई बार हमारे मन में अपने अध्यात्म के प्रति योग्य दृष्टिकोण नहीं होता है। हम किसी भी प्रकार की पूजा को अध्यात्म समझ लेते हैं। वह अध्यात्म हो भी सकता है और नहीं भी। किसी भी क्रिया में अध्यात्म है अथवा नहीं, यह व्यक्ति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
रावण भी पूजा करता था, वह भी शिवजी का आराधक था, लेकिन आध्यात्मिक नहीं था। अध्यात्म एक ऐसी विधा है, जो हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। अगर हम लोग अपने जीवन और कारोबार में अध्यात्म लाना चाहते हैं तो मैं कौन हूं, इस दृष्टिकोण के साथ खुद में झांकना चाहिए। उन्होंने कहा कि नारा दिया कि कृष्णभूमि और काशी विश्वनाथ तो हमारा है ही। मेरा नारा है कि ‘ये तो केवल झांकी है, पीओके अभी बाकी है’। स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा डेली कालेज के धीरूभाई अंबानी सभागार में आयोजित ओपन फोरम सेशन में बतौर वक्ता उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि धर्म शब्द के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है। धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं हो सकता। धर्म इससे बड़ी व्यापक कल्पना है। रिलीजन का अर्थ संप्रदाय, पंथ, पूजा-पद्धति है। धर्म के अंदर पूजा पद्धति आती है, लेकिन यह धर्म का छोटा भाग है। यदि हमारे भीतर अध्यात्म की धारणा होगी, तो हम धार्मिक रहेंगे। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति, समाज, प्रकृति और परमात्मा- इन चारों के भीतर का संबंध धर्म है। इन चारों के भीतर संतुलन करने वाली कोई भी क्रिया धर्म है। एक व्यक्ति को वह कार्य नहीं करना चाहिए, जो समाज, प्रकृति, स्वयं की शांति के लिए घातक हैं। अशांति जीवन में तब आती है, जब हम इस संतुलन को तोड़ देते हैं। विकास के नाम पर हमने जो प्रकृति का विनाश किया है, आज वह हम पर विपत्ति लाने वाला है।